
काशीबुग्गा मंदिर स्टैम्पीड- आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में शनिवार को एक बेहद दुखद घटना सामने आई, जब Sri Venkateswara Swamy Temple (Kasibugga), काशीबुग्गा नामक स्थान पर स्थित एक निजी मंदिर में भारी गर्दी के कारण स्टैम्पीड हो गई। इस हादसे में कम-से-कम आठ महिलाएं और एक 13-साल का लड़का अपनी जान गंवा बैठे, जबकि दर्जनों श्रद्धालु घायल हुए। राज्य की राजनीति, प्रशासनिक जवाबदेही और मंदिर सुरक्षा व्यवस्था पर अब गहरा सबक सामने आ गया है।
काशीबुग्गा मंदिर स्टैम्पीड
घटना उस समय हुई, जब धार्मिक पर्व एक़ादशी के अवसर पर सफेद-श्रद्धा लिए हजारों भक्त दर्शन हेतु उमड़े थे। शनिवार को आने वालों की संख्या सामान्य से कहीं अधिक थी। हालांकि पूर्व में इस मंदिर के संबंध में सुरक्षा का मुद्दा उठ चुका था, लेकिन जिन उपायों पर चर्चा हुई थीं—they आज तक लागू नहीं हो पाए।
राज्य के मुख्यमंत्री N. Chandrababu Naidu ने इस घटना पर गहरी संवेदना प्रकट की और कहा कि नुकसान अत्यंत दुखद है। उन्होंने कहा कि मंदिर प्रबंधन ने पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन को भारी श्रद्धालुओं के आगमन की जानकारी नहीं दी, अन्यथा पुलिस नियंत्रण और crowd-management किया जा सकता था।
मंदिर में क्या कमी थी?
एक वरिष्ठ अधिकारी ने खुलासा किया कि कई सुझाए गए कदम अभी तक अमल में नहीं आए थे। इनमें शामिल थे: धातु रेलिंग-बैरिकेड्स लगाना, प्रवेश और निकास के लिए अलग मार्ग बनाना, भीड़ बढ़ने वाले दिनों में विशेष पुलिस या मंदिर अधिकारी तैनात करना, प्रतीक्षा क्षेत्र में भीड़ जमा न होने देना, जूते-चप्पल जमा करने वाले काउंटर पर सुचारु व्यवस्था सुनिश्चित करना, तथा “प्रसाद” या “कूपन” वितरण की घोषणा करके अचानक भीड़ जुटने से बचना।
लेकिन इन सुझावों पर काम नहीं हुआ। अधिकारियों के अनुसार, “हमारे अधिकांश मंदिर बहुत पुराने और संकरे हैं; ऐसा डिजाइन था कि प्रवेश और निकास एक ही रास्ते से होता था। नए निकास मार्ग बनाने के लिए वास्तु-दृष्टि से भी अनुकूल नहीं माना गया।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सार्वजनिक मंदिरों का निरीक्षण हुआ था, लेकिन यह मंदिर “निजी प्रबंधन” में था, इसलिए विभागीय कवरेज से बाहर था।
घटना के बाद मिली प्रारंभिक जानकारी यह है कि स्थिति इस प्रकार बनी: मंदिर के प्रथम तल तक जाने के 20-25 सीढ़ियों पर महिलाएं दर्शन करने के लिए खड़ी थीं। अचानक भीड़ में धक्का-मुक्की हुई, एक रेलिंग टूट गई, और लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। जब प्रवेश-निकास एक ही मार्ग से हो रहा था, तो लोग बाहर निकलने और अंदर आने के क्रम में उलझ गए। मंदिर के अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने रेलिंग-बैरिकेड्स लगाए थे, लेकिन रविवार या शुभ दिन की इतनी भारी संख्या के सामने ये पर्याप्त नहीं साबित हुए।
मुख्यमंत्री ने मंदिर प्रबंधन पर ‘उपयुक्त तैयारी नहीं’ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यदि पुलिस को पहले सूचना दी होती, तो सुरक्षित व्यवस्था बनाई जा सकती थी। मुख्यमंत्री ने कहा, “यह बेहद दुःखद है कि इस तरह के निर्दोष लोग मरे। नियमों को सख्ती से लागू किया जाएगा और जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई होगी।”
वहीं विपक्षी नेता एवं पूर्व मंत्री Seediri Appalaraju ने कहा कि मंदिर प्रबंधन ने पुलिस को भारीड़ के बारे में सूचना दी थी, लेकिन पुलिस कर्मियों की संख्या पर्याप्त नहीं थी। उन्होंने कहा कि कई युवा स्वयंसेवक, जिनमें YSRCP कार्यकर्ता भी शामिल हैं, ने शनिवार को भारी भीड़ देखी और पुलिस को फोन किया था। परंतु पर्याप्त तैनाती नहीं हुई।
यह घटना उस समय सामने आ रही है जब इसी वर्ष जनवरी 8 को Tirumala Tirupati Devasthanams (टीटीडी) के अंतर्गत आए मंदिर में विशेष दर्शन टिकट वितरण काउंटर पर स्टैम्पीड हुई थी, जिसमें छह लोगों की जान गई थी। उस हादसे के बाद भी सुधारात्मक कदम इतने प्रभावी नहीं दिखे।
विश्लेषण करे तो यह बहुत बड़ी बात है कि इस काशीबुग्गा मंदिर दुर्घटना की रिपोर्ट में सामने आया कि मंदिर क्षमता केवल 2-3 हजार लोगों की थी, जबकि एक़ादशी और शनिवार पर अनुमानित संख्या 10-25 हजार तक पहुँच गई थी। मंदिर प्रबंधन ने प्रभावी भीड़-निगरानी, प्रवेश-निकास मार्ग विभाजन, पर्याप्त सुरक्षा बल तैनाती, और सूचना प्रशासन को पूर्व में देने की जिम्मेदारी निभाई नहीं।
इसके अलावा, प्रशासन ने स्पष्ट किया कि यह मंदिर सरकारी “देवदाय” या “एंडोवमेंट्स विभाग” (Endowments Department) के अंतर्गत नहीं आता था, इसलिए नियमित निरीक्षण और लाइसेंसिंग प्रक्रिया से बाहर था।
इस पूरी पृष्ठभूमि में, यह सवाल उठता है कि इतनी गंभीर चेतावनियाँ और पूर्व अनुभव होने के बाद भी क्यों प्रणालीगत बदलाव नहीं हुए। एक अधिकारी ने बताया कि मंदिर के पुरानी संरचना, पवित्र स्थल के वास्तु-सिद्ध डिजाइन, संकरी सीढ़ियाँ, प्रवेश-निकास का एक मार्ग — इन सबके कारण सुरक्षित व्यवस्था में बाधा थी।
हालांकि राज्य सरकार ने अब इस घटना को गंभीरता से लिया है। मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश दे दिया है। पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता और घायलों को त्वरित चिकित्सा सुविधा देने का निर्णय लिया गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपए और घायलों को 50 हजार रुपए की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है।
इस घटना से मंदिर सुरक्षा, श्रद्धालु भीड़-प्रबन्धन और धार्मिक आयोजनों में प्रशासनिक जाँच-पड़ताल की आवश्यकता एक बार फिर उजागर हुई है। देश में धार्मिक स्थल, विशेषकर जो निजी प्रबंधन में हों, उन्हें भीड़-संकट के लिहाज़ से उसी तरह नियंत्रित करने की जरूरत है जैसे बड़े सार्वजनिक मंदिरों को किया जाता है।
भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना होगा:
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मंदिर परिसर में प्रवेश और निकास के अलग-अलग मार्ग सुनिश्चित करना।
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धातु रेलिंग, बैरिकेड-लाइनें, इंतजार क्षेत्र और निकलने के लिए विशेष व्यवस्था करने।
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बड़े-भारी आयोजन, त्योहार या शुभ दिन पर पुलिस-प्रबंधन को पूर्व सूचना देना और अतिरिक्त कर्मियों की तैनाती करना।
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भीड़ को अचानक उत्तेजित न करने के लिए “प्रसाद वितरण” या “कूपन वितरण” जैसे घोषणाओं से बचना।
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निजी मंदिरों को भी सार्वजनिक सुरक्षा मानकों के अनुरूप लाइसेंसिंग और निरीक्षण प्रणाली में लाना।
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पुरानी और संकरी संरचना वाले मंदिरों में भीड़-संचालन हेतु आधुनिक तकनीक (कैमरा-मॉनिटरिंग, ड्रोन निगरानी) बहाल करना।
यह केवल एक धार्मिक स्थल का मामला नहीं बल्कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा, प्रशासनिक जवाबदेही और सामाजिक-वित्तीय चेतना का विषय बन चुका है। यदि समय रहते सुधार नहीं हुआ तो ऐसी घटनाएं दोहराई जा सकती हैं, जो न सिर्फ मानव जीवन की कीमत बढ़ाती हैं बल्कि सरकार की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करती हैं।
अंत में, यह घटना हमें याद दिलाती है कि श्रद्धा और आस्था के साथ-साथ सुरक्षा और सुशासन का संतुलन ज़रूरी है। जब हजारों श्रद्धालु एक पवित्र दायित्व के लिए आते हैं, तो व्यवस्था में एक-एक कमी जान का प्रश्न बन सकती है। काशीबुग्गा की इस त्रासदी से हमें यह सबक लेना होगा कि “वो जो कभी हुआ था” को भूलना नहीं, बल्कि “वो जो होना चाहिए था” को अब तुरंत करना होगा।



