मनोरंजन

Bison Movie Review: जाति संघर्ष और कबड्डी की कहानी, ध्रुव विक्रम की दमदार भूमिका

तमिल सिनेमा में सामाजिक मुद्दों को संवेदनशीलता और आख़िरी दम तक भावनात्मक वज़न देने वाली फिल्मों की अपनी एक पहचान है। निर्देशक मारी सेल्वराज (Mari Selvaraj) की नई फिल्म Bison: Kaalamaadan भी उन्हीं फिल्मों की श्रेणी में खड़ी होती है। इस फिल्म का केन्द्र है कबड्डी खिलाड़ी मणाथी गणेशन (Manathi Ganesan) की ज़िंदगी, जहाँ सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि जाति-राजनीति, समुदायों के भीतर संघर्ष और आत्म-स्वाभिमान की लड़ाई भी है।

फिल्म की शुरुआत होती है गाँव वनाति (Vanathi) से, जहाँ मुख्य पात्र कित्तन (Kittan) बचपन से कबड्डी के लिए जुनूनी है। इस जुनून को स्कूल के शिक्षक पहचानते हैं और उसे स्कूल की कबड्डी टीम में जगह दिलाते हैं। लेकिन गाँव के अंदर दो शक्तिशाली गुटों की राजनीति, जातिगत भेदभाव और सामुदायिक हिंसा ऐसे हैं जो कित्तन के सपनों के रास्ते में दीवार खड़ी कर देते हैं।

नाम-चीन गुटों के नेता अपने-अपने समर्थकों के साथ जातिगत विभाजन बढ़ाते हैं। कित्तन पर असंख्य आरोप लगते हैं और परिवार से लेकर स्कूल तक उसकी ज़िंदगी पर हर ओर दबाव है। उसकी जाति-स्थिति, समाज का डर और हिंसा का माहौल, ये तीनों मिलकर कित्तन को हर मोड़ पर कसौटी पर खड़ा करते हैं।

ध्रुव विक्रम ने इस भूमिका में गहराई से काम किया है — कित्तन का दर्द, उसका जुनून, उसकी ठोकरें, और फिर जोश-उथल-पुथल सब पर्दे पर प्रभावशाली हैं। जब वह कबड्डी के मैदान में उतरता है, तो सिर्फ एक खेल नहीं खेला जाता; हर पकड़, हर छक्का, हर मुकाबला एक लड़ाई होती है — आत्म-सम्मान की, पहचान की, उससे ऊपर उठने की।

लेकिन फिल्म सिर्फ खेल की यात्रा नहीं है; जाति संघर्ष की पृष्ठभूमि इसका दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है। गाँव की राजनीतिक लड़ाइयाँ, ऊँची जातियों की उपेक्षा और निचली जातियों के संघर्ष को मारी सेल्वराज ने बिना शहद-ओ-मिठास के दिखाया है। फिल्म की एक-एक घटना जैसे आत्मारक्षा की पुकार हो।

तकनीकी पहलू भी कमजोर नहीं हैं। निवास के प्रसन्ना (Nivas K. Prasanna) की संगीत रचना, विशेष रूप से बैकग्राउंड स्कोर, कबड्डी के मुकाबलों और संघर्षपूर्ण दृश्यों में एक जीवंतता जोड़ती है। इल मिलन (transition)-से शुरुआत के दृश्यों के ब्लैक-एंड-व्हाइट से कलर में जाने तक के सीन, समय और भाव का फर्क दर्शाते हैं। छायांकन (cinematography) भी गाँव की मिट्टी, हिंसा की नमी और कराहती ज़िंदगी को काग़ज़ की तरह उकेरता है।

फिल्म की रनटाइम करीब 2 घंटा 48 मिनट है, जो कुछ दर्शकों को भारी लगा है, खासकर पहले भाग में। कुछ पात्रों का परिचय बहुत देर से होता है, जिससे उनकी कहानी की गहराई कम दिखती है। यह थोड़ी खामी है, लेकिन पूरे फिल्म की कहानी और संदेश इसे कमजोर नहीं होने देते।

कलाकारों की भूमिका उल्लेखनीय है। Pasupathy ने कित्तन के पिता के रूप में ज़िम्मेदारी और दर्द दोनों में भूमिका निभाई है। Anupama Parameswaran, Rajisha Vijayan जैसे कलाकार अपने हिस्से की भूमिका पर खरे उतरते हैं। खासकर Rajisha की एक पानी वाले सीन में जीवन और ज़िंदगी के बीच की लड़ाई झलकती है।


समीक्षा की मुख्य ताकतें और कमियाँ

ताकतें:
फिल्म का भावनात्मक मूल (emotional core) मजबूत है — कित्तन का संघर्ष, जातिगत हिंसा, सपनों के रास्ते की ठोकरें, सब मिलकर एक कहानी बुनती हैं जो सिर्फ दिखाती नहीं बल्कि महसूस कराती है। ड्रामा, एक्शन, संघर्ष और अदाकारी का संतुलन बेहतर तरीके से हुआ है। Mari Selvaraj की कहानी बताने की शैली — जिस तरह गाँव की टूटती हुई आत्मा को दृश्य और संवादों में उतारा है — वह फिल्म को दिलचस्प बनाती है।

कमियाँ:
फिल्म का पहला भाग थोड़ा धीमा लगता है, जिससे कहानी के प्रवाह में थोड़ी गिरावट महसूस होती है। कुछ नए पात्रों का इंट्रोडक्शन बाद में होता है, जिससे उनका प्रभाव कम पड़ता है। साथ ही, कुछ संवाद और दृश्य ज़्यादा लंबे समय तक खिंचते हैं, जो हैवी महसूस कराते हैं। लेकिन ये कमियाँ पूरी फिल्म की मर्मभेदी स्थिति और संदेश को कम नहीं कर पाती।


सामान्य जनता और समीक्षकों की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर दर्शक फिल्म की कहानी की गहराई, ध्रुव विक्रम की भूमिका और जातिगत संघर्ष के चित्रण की तारीफ कर रहे हैं। ट्विटर समीक्षा कहती है कि “Bison काबड्डी का जश्न नहीं मनाती, बल्कि खेल के भीतर दबे हुए दर्द और अलगाव को उजागर करती है।” कुछ लोग कहते हैं कि फिल्म ने गाँव-पारिवारिक दर्द और संघर्ष की झलक इतनी सच्चाई से वर्षा है कि हॉल से बाहर निकलते वक्त भी भावनाएँ दूर नहीं जाती।

पूर्व में, फिल्म प्रतिभूत हुई थी कि यह Mari Selvaraj की पिछली फिल्मों — Pariyerum Perumal, Maamannan आदि — की तरह समाज की गहरी जड़ों को छूने वाली होगी। अधिकांश समीक्षाएँ यह स्वीकार करती हैं कि फिल्म वाकई “भावनात्मक, ज़ड़ से जुड़ी और संघर्षपूर्ण” है।


निष्कर्ष

“Bison: Kaalamaadan” सिर्फ एक खेल-फिल्म नहीं है; यह उस संघर्ष की कहानी है जिसे अक्सर दबा दिया जाता है। जाति, समाज, पहचान, दबाव — ये सभी फिल्म के हर अहसास में मौजूद हैं। ध्रुव विक्रम ने इस भूमिका को पूरी निष्ठा से निभाया है, और फिल्म की ताकत यही है कि वह दर्शक को सोचने और महसूस करने पर मजबूर कर देती है।

अगर आप ऐसी फिल्में पसंद करते हैं जो सिर्फ मनोरंजन नहीं करतीं बल्कि सवाल उठाती हैं, आराम से दिखाती हैं कि जीत सिर्फ मैदान की नहीं होती — बल्कि समाज की दीवारों से लड़ने की भी होती है — तो “Bison: Kaalamaadan” देखना ज़रूर चाहिए।

Related Articles

Back to top button