
कर्नाटक के ग्रामीण विकास, IT/BT और पंचायत राज मंत्री प्रियंक खरगे ने एक बार फिर से राष्ट्रीय सुर्खियाँ बटोर ली हैं जब उन्होंने सरकार द्वारा संचालित शासकीय स्कूलों और कॉलेजों में RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की गतिविधियों पर सवाल उठाया। उन्होंने यह मांग की है कि इन शैक्षिक संस्थानों में RSS का हस्तक्षेप रोका जाए, क्योंकि वह मानते हैं कि यह भारत के संविधान और धर्मनिरपेक्ष सोच के खिलाफ है।
खरगे ने शुक्रवार को कहा,
“अगर BJP नेताओं के बच्चे RSS वर्दी पहनकर सार्वजनिक रूप से गाय मूत्र पीएँ, तभी मैं बात करना बंद कर दूंगा।”
एक हफ्ते पहले उन्होंने मुख्य मंत्री सिद्धरामय्या को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने RSS गतिविधियों को सरकारी परिसरों में नियंत्रित करने की अपील की थी। उनका कहना था कि ये गतिविधियाँ संवैधानिक एकता और धर्मनिरपेक्षता की भावना के लिए खतरा हैं।
धमकियाँ और व्यक्तिगत हमले
प्रियंक खरगे ने यह भी बताया कि इस मामले को लेकर उनके और उनके परिवार को लगातार धमकियाँ भरे फोन कॉल्स मिल रहे हैं। उन्होंने ट्विटर (X) पर लिखा,
“पिछले दो दिन से मेरा फोन बंद नहीं हुआ है। वे कॉल धमקים, अभद्र भाषा और अपशब्दों से भरी होती हैं — सिर्फ इसलिए कि मैंने सरकारी संस्थानों में RSS गतिविधियों पर सवाल उठाया।”
उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि ये हमले उन्हें विचलित नहीं कर सकते। खरगे ने कहा कि यह लड़ाई किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि उस मानसिकता के खिलाफ है जो उन्हें “दिमाग धोने” की कोशिश करती है। उन्होंने छात्रों को बुद्ध, बसवन्ना और डॉ. अंबेडकर की शिक्षाओं से जोड़ने की बात कही ताकि विभाजनकारी विचारों को टाला जाए।
मुख्यमंत्री के आदेश और नीति विचार
खरगे द्वारा उठाए गए इस सवाल पर मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने निर्देश दिया है कि मुख्य सचिव RSS-संबंधित मामलों के निवारण हेतु देखे कि तमिलनाडु में इस तरह की चिंताओं को कैसे संबोधित किया गया। इससे संकेत मिलता है कि राज्य सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है।
तेज प्रतिक्रिया के बीच, कर्नाटक मंत्रिमंडल ने यह निर्णय लिया है कि सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में RSS गतिविधियों को रोकने संबंधी नियम बनाए जाएँ।
यदि कोई संगठन बिना अनुमति या नियमों का उल्लंघन कर सार्वजनिक स्थल या सरकारी परिसर में कार्यक्रम आयोजित करेगा, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
विरोध और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
बीजेपी के कर्नाटक अध्यक्ष बी. वाई. विजयेंद्र ने प्रियंक खरगे के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह “मूर्खता” है और कांग्रेस केवल “ध्यान बंटाने” की कोशिश कर रही है।
कृष्णराजा क्षेत्र के बीजेपी विधायक टीएस श्रीवत्स ने इस टिप्पणी को “बेवकूफी की पराकाष्ठा” करार दिया और कहा कि प्रियंक को RSS की वास्तविक समझ नहीं है।
इसके अलावा, विपक्षी नेता एन. रविकुमार ने भी आग्रह किया है कि प्रियंक को मंत्रिमंडल से बाहर किया जाए क्योंकि उन्होंने RSS पर कटाक्ष किया।
राज्य भर में इस मुद्दे को लेकर चर्चाएँ बढ़ गई हैं, अन्य राज्यों के नेताओं ने भी इस विवाद पर अपनी राय दी है।
धमकी देने वाले गिरफ्तार
इस विवाद के बाद एक व्यक्ति को महाराष्ट्र में गिरफ्तार किया गया है, जिसने प्रियंक खरगे को फोन पर धमकी दी थी। आरोप है कि वह RSS से जुड़ा हो सकता है और धारा 351 (आपत्तिजनक जांच) तथा अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।
पुलिस ने कहा कि आरोपी का नाम दिनेश नारोनी है, जिसने यह कॉल करते समय नशे में होने की बात कबूली और कहा कि उसने नंबर इंटरनेट से लिया था।
क्या यह सिर्फ भाषणबाजी है या संवैधानिक प्रश्न?
प्रियंक खरगे ने यह तर्क दिया है कि यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक विवाद नहीं है, बल्कि संविधान और शिक्षा के मूल्यों से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि सरकारी स्कूलों में किसी विचारधारा का दबदबा बढ़े, तो वह आज़ाद और निष्पक्ष शिक्षा की भावना ख़तरे में पड़ सकती है।
उन्होंने यह भी कहा कि कई सरकारी कर्मचारियों और अधिकारीयों ने बिना अनुमति RSS कार्यक्रमों को संबोधित किया है, और उन्हें इससे रोकना चाहिए।
खरगे ने सुप्रीम कोर्ट या अन्य उच्च न्यायालयों को इस मसले में देखने का आह्वान किया है कि शिक्षा संस्थानों को राजनीतिक या वैचारिक प्रभाव से बचाया जाए।
आगे की लड़ाई: चुनावी माहौल और प्रभाव
यह विवाद, खासकर कर्नाटक के आगामी चुनावों को देखते हुए, तेजी पकड़ता जा रहा है। प्रियंक खरगे के मुखर बयानों ने इस मुद्दे को राजनीतिक रणभूमि में बड़ा बना दिया है। उनका कहना है कि यह लड़ाई विचारधारा की है — एक ओर खुले विचार, धर्मनिरपेक्ष शिक्षा, और दूसरी ओर संकुचित दृष्टिकोण।
यदि यह मामला न्यायालयों तक जाता है, तो यह शिक्षा, संविधान और राजनीतिक अधिकारों के बीच एक नागरिक एवं वैचारिक संघर्ष बन सकता है।
निष्कर्ष
कर्नाटक मंत्री प्रियंक खरगे ने RSS गतिविधियों को सरकारी शैक्षिक परिसरों से हटाने की मांग कर एक जटिल प्रश्न को हवा दी है। उनके बयानों ने न केवल राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, बल्कि यह सवाल उठाया है कि किस हद तक शिक्षा और विचारधारा एक साथ चल सकती हैं। विपक्षी दबाव, धमकियाँ, गिरफ्तारी—यह सब इस लड़ाई को और तीव्र बनाते हैं।
भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार अगले कदम क्या उठाती है — नियम बनाती है, कानूनी लड़ाई होती है, या विचारधाराएँ आमने-सामने आती हैं। लेकिन एक बात स्पष्ट है: इस विवाद ने शिक्षा, राजनीति और संविधान की सीमाओं पर बहस को फिर से जीवित कर दिया है।



