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Dhurandhar Review: रणवीर सिंह और अक्षय खन्ना की तूफानी परफॉर्मेंस, देशभक्ति, आतंक और बदले की सबसे खौफनाक कहानी

Dhurandhar Review: फिल्मकार आदित्य धर की फिल्मों का एक अलग ही अंदाज होता है। उनकी कहानियां न तो अचानक चौंकाती हैं और न ही कभी कमजोर पड़ती हैं। उनके सिनेमा में देशभक्ति, युद्ध का जोश, रणनीति और दुश्मन के प्रति सख्त नजरिया साफ दिखाई देता है। उनकी नई फिल्म ‘धुरंधर’ भी उसी सोच की अगली कड़ी है, लेकिन इस बार पैमाना और ज्यादा बड़ा, ज्यादा गहरा और ज्यादा खतरनाक है।

फिल्म की शुरुआत से ही इसका एजेंडा साफ हो जाता है। कहानी सीधे भारत-पाकिस्तान के तनाव, आतंकवाद और बदले की भावना की ओर बढ़ती है। फिल्म यह स्थापित करती है कि भारत अब सिर्फ सहने वाला देश नहीं रहा, बल्कि हर हमले का जवाब सोच-समझकर और पूरी ताकत से देता है। ‘धुरंधर’ का मकसद साफ है – पाकिस्तान की उस मशीनरी में सीधा घुसकर वार करना, जो दुनिया भर में आतंक को हवा देती है।

फिल्म का पहला हिस्सा आठ अध्यायों में बंटा है, जिससे कहानी को समझना आसान हो जाता है। ये अध्याय भारत के उन जख्मों की याद दिलाते हैं, जो आज भी देश के दिल में ताजे हैं। IC-814 कंधार अपहरण, संसद पर हमला, और मुंबई का 26/11 आतंकवादी हमला — इन सभी घटनाओं को जोड़ते हुए फिल्म यह दिखाती है कि भारत को आखिरकार अपनी रणनीति बदलनी ही पड़ी।

यहीं से जन्म होता है ऑपरेशन धुरंधर का — एक ऐसा गुप्त मिशन जो सिर्फ प्लानिंग नहीं, बल्कि गुस्से, बदले और बेदर्द एक्शन से भरा हुआ है। यह ऑपरेशन सिर्फ आतंकियों को खत्म करने की कहानी नहीं है, बल्कि उस मानसिकता का भी आईना है, जो कहती है कि घायल भारत अब कहीं ज्यादा खतरनाक हो चुका है।

फिल्म में कराची के लयारी इलाके को जिस तरह दिखाया गया है, वह बेहद प्रभावशाली है। गली-मोहल्ले, हथियारबंद गिरोह, राजनीतिक साजिशें और अंडरवर्ल्ड का नेटवर्क — सब कुछ इतना वास्तविक लगता है कि दर्शक खुद को उसी दुनिया के बीच खड़ा महसूस करता है। फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है, और कई बार तो दर्शक खुद गूगल पर जाकर सर्च करने लगते हैं कि जो दिखाया गया है, वह कितना सच है।

अगर ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ एक खुली देशभक्ति की हुंकार थी, तो ‘धुरंधर’ ज्यादा शातिर, ज्यादा प्लानिंग और ज्यादा दिमागी खेल वाली फिल्म है।

रणवीर सिंह और अक्षय खन्ना की धमाकेदार टक्कर

फिल्म के केंद्र में हैं रणवीर सिंह, जो हमजा अली मज़हरी के किरदार में नजर आते हैं। उनका रोल शांत आग जैसा है — बाहर से ठंडा, भीतर से भड़कता हुआ। रणवीर अपने किरदार में पूरी ईमानदारी से उतरते हैं, हालांकि कई क्लोज़-अप शॉट्स में कहीं-कहीं उनके खिलजी वाले रंग की झलक मिलती है। फिर भी उनका अभिनय कहानी को मजबूती देता है।

लेकिन पूरी फिल्म के असली हीरो साबित होते हैं अक्षय खन्ना। रहमान बलोच उर्फ डाकैत के रोल में उन्होंने जो किया है, वह लंबे समय तक याद रखा जाएगा। उनके संवाद कम हैं, लेकिन उनकी आंखें, उनकी खामोशी और उनके टूटने के पल दर्शक के दिल में सीधा उतर जाते हैं। उनकी मौजूदगी हर सीन को भारी बना देती है। यह उनके करियर के सबसे दमदार प्रदर्शनों में से एक माना जा सकता है।

संजय दत्त चौधरी आसलम के रूप में कहानी को वजन देते हैं। अर्जुन रामपाल आईएसआई चीफ के किरदार में सख्त और खतरनाक नजर आते हैं। वहीं राकेश बेदी ने एक चालाक राजनेता जमाल के रोल में हल्की-सी हास्य की झलक देकर माहौल को संतुलित किया है।

रणवीर सिंह और सारा अर्जुन की केमिस्ट्री भी फिल्म में असरदार लगती है। उम्र का अंतर स्क्रीन पर नजर आता है, लेकिन कहानी के हिसाब से यह रिश्ता सही बैठता है और फिल्म को कुछ भावनात्मक पल भी देता है।

पाकिस्तान को लेकर फिल्म का नजरिया

‘धुरंधर’ पाकिस्तान को लेकर कोई घुमा-फिराकर बात नहीं करती। फिल्म साफ कहती है कि आतंकवाद को पालने वाला सिस्टम वहीं से चलता है। जनरल जिया-उल-हक की “Bleed India with a thousand cuts” नीति को फिल्म सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराती है।

हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान को पूरी तरह कार्टून जैसा नहीं दिखाया गया है। यहां राजनीति, सत्ता की लड़ाई और बलूचिस्तान के अंदर चल रहे संघर्ष को भी जगह दी गई है। यह एक rare perspective है, जो आम तौर पर मेनस्ट्रीम फिल्मों में देखने को नहीं मिलता।

26/11 की फुटेज और मीडिया की भूमिका

फिल्म का सबसे झकझोर देने वाला हिस्सा 26/11 के असली फुटेज का इस्तेमाल है। खासतौर पर वह सीन, जहां दिखाया गया है कि किस तरह लाइव न्यूज कवरेज के जरिए आतंकवादी और उनके हैंडलर पूरे ऑपरेशन की जानकारी रियल टाइम में हासिल कर रहे थे। यह सीन बेहद असहज कर देता है और यह सोचने पर मजबूर करता है कि मीडिया की एक छोटी सी गलती कितनी बड़ी कीमत ले सकती है।

क्लाइमेक्स और फिल्म की लंबाई बनी कमजोर कड़ी

फिल्म का क्लाइमेक्स न तो बहुत कमजोर है और न ही बहुत जबरदस्त। यह बस मौजूद है। यह साफ तौर पर पार्ट 2 के लिए जमीन तैयार करता है। कोई बड़ा क्लिफहैंगर नहीं है, लेकिन आगे की कहानी के संकेत जरूर छोड़ दिए जाते हैं।

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी लंबाई है। करीब 3 घंटे 34 मिनट की यह फिल्म दर्शकों का धैर्य कई बार परखती है। कई जगह शॉट्स जरूरत से ज्यादा लंबे खींचे गए हैं, खासकर खून, लाशें और गोलियों से छलनी शरीर। हिंसा को असर डालना चाहिए, सुन्न नहीं करना चाहिए — और यही जगह फिल्म से थोड़ी चूक हो जाती है।

म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर

फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर शानदार है। ‘करवां’ जैसी धुनें माहौल को गहराई देती हैं। वहीं ‘हवा-हवा’ जैसे क्लासिक गाने का इस्तेमाल कहानी में एक अलग टेक्सचर जोड़ता है, जो चौंकाता भी है और प्रभावी भी लगता है।

कुल मिलाकर कैसी है ‘धुरंधर’?

‘धुरंधर’ एक बड़ी सोच वाली, राजनीतिक रूप से तेज, एक्शन से भरपूर और भावनाओं से टकराने वाली थ्रिलर है। फिल्म हर बार परफेक्ट नहीं बैठती, लेकिन आदित्य धर ने जो दुनिया बनाई है, वह इतनी दमदार है कि दर्शक अंत तक जुड़े रहते हैं।

अक्षय खन्ना की जबरदस्त एक्टिंग, रणवीर सिंह का मजबूत किरदार, सच्ची घटनाओं की गूंज और भारत-पाक रिश्तों की कड़वी सच्चाई — इन सबके बीच ‘धुरंधर’ एक ऐसी फिल्म बन जाती है, जो लंबी होने के बावजूद आपको बांधे रखती है।

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