
मैसूरु में बाघ का आतंक, सारगुर में बाघ का हमला — 53 वर्षीय किसान की मौत
कर्नाटक के मैसूरु जिले के सारगुर तालुका में 31 अक्टूबर को एक और बाघ हमले की घटना ने पूरे इलाके को दहला दिया। यह पिछले एक महीने में तीसरा जानलेवा हमला है जिसने ग्रामीणों को भयभीत कर दिया है।
घटना कूड़गी गाँव की है, जो हेडियाला वनमंडल के मोलैयुरु रेंज के अंतर्गत आता है। मृतक किसान की पहचान दोड्डनिंगाiah (53) के रूप में हुई है। वे अपने खेत के पास बकरियाँ और भेड़ें चरा रहे थे, तभी अचानक झाड़ियों से निकलकर एक बाघ ने उन पर हमला कर दिया।
गाँव के लोगों ने आवाज़ें लगाकर बाघ को भगाने की कोशिश की, लेकिन जब तक वे पहुँचे, दोड्डनिंगाiah की मौत हो चुकी थी। ग्रामीणों ने बाद में उनका शव जंगल से बरामद किया।
एक महीने में तीन मौतें — बढ़ता डर और तनाव
यह हमला पिछले एक महीने में तीसरा टाइगर अटैक है।
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17 अक्टूबर को बडगालपुरा गाँव में 55 वर्षीय किसान महादेव की बाघ के हमले से मौत हुई थी।
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26 अक्टूबर को मूल्लूर गाँव के 58 वर्षीय पशुपालक राजशेखर मूर्ति की जान भी बाघ ने ले ली थी।
लगातार तीन मौतों ने सारगुर, हीडियाला, नुगु और बंदीपुर जैसे इलाकों में दहशत का माहौल बना दिया है। ग्रामीण अब जंगल के पास अपने खेतों में जाना भी असुरक्षित मान रहे हैं।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बताया — इंसानी दखल मुख्य कारण
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस बढ़ते जंगल-मानव संघर्ष पर चिंता जताते हुए कहा कि “इंसानों का जंगलों में बढ़ता दखल बाघों के हमलों का मुख्य कारण है।”
उन्होंने कहा —
“जंगलों में लगातार नए-नए रिसॉर्ट खुल रहे हैं। सफारी और पर्यटक यातायात बढ़ गया है। इससे वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास और शांति भंग हो रही है। पानी और चारे की कमी के कारण बाघ, तेंदुए और हाथी अब आबादी वाले इलाकों की ओर आ रहे हैं।”
मुख्यमंत्री ने वन विभाग को निर्देश दिया कि गैरकानूनी रिसॉर्ट चलाने वालों पर तुरंत कानूनी कार्रवाई की जाए और जंगल क्षेत्र में पर्यटन सफारी की संख्या घटाई जाए।
अवैध रिसॉर्ट्स और सफारी पर सख्ती की तैयारी
राज्य सरकार का मानना है कि जंगल के भीतर और उसके किनारे गैरकानूनी तरीके से बन रहे रिसॉर्ट्स ने वन्यजीवों के जीवन-चक्र को प्रभावित किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मंत्रियों के साथ इस मुद्दे पर बैठक की जा चुकी है और अब वे स्वयं इस पर उच्च-स्तरीय बैठक की अध्यक्षता करेंगे।
उनका कहना था —
“जो लोग नियम तोड़कर जंगल क्षेत्र में होटल या लॉज चला रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई तय है। साथ ही पर्यटकों के लिए सफारी की संख्या कम करने का भी आदेश जारी किया गया है।”
बंदीपुर टाइगर रिजर्व और आसपास के इलाके में बढ़ा संघर्ष
मैसूरु और चामराजनगर जिलों की सीमा पर फैला बंदीपुर टाइगर रिजर्व दक्षिण भारत के प्रमुख वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है।
यहाँ से कई बाघ अब जंगल की सीमाओं को पार कर आस-पास के गाँवों तक पहुँचने लगे हैं।
वन अधिकारियों के मुताबिक, “6 से 8 बाघों ने जंगल की सीमा छोड़ी है, लेकिन वे ‘मन-ईटर’ नहीं हैं।”
फिर भी, इन हमलों ने ग्रामीणों में भारी डर और असुरक्षा पैदा कर दी है।
सारगुर और कूड़गी जैसे गाँव सीधे जंगल से लगे होने के कारण सबसे अधिक खतरे में हैं। कई परिवारों ने अब अपने पशु-पालन कार्य को बंद कर दिया है या जंगल के किनारे जाना छोड़ दिया है।
ग्रामीणों की हालत — डर और नुकसान
कूड़गी और आसपास के गाँवों में ग्रामीण अब खेतों और चरागाहों में जाने से डर रहे हैं।
कई परिवार शाम होते ही घर के दरवाज़े बंद कर लेते हैं।
बकरियों और मवेशियों को खुला छोड़ना अब नामुमकिन हो गया है।
एक स्थानीय किसान ने बताया,
“हमारा पूरा जीवन पशुओं पर निर्भर है। लेकिन अब जंगल की ओर जाना मौत को बुलाने जैसा हो गया है। वन विभाग सिर्फ देख रहा है, कार्रवाई नहीं कर रहा।”
इन घटनाओं ने न केवल लोगों की आजीविका पर असर डाला है, बल्कि मानसिक रूप से भी डर का माहौल बना दिया है।
सरकार का ऐलान — मुआवजा और सुरक्षा उपाय
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मृतक किसानों के परिवारों के लिए सरकारी मुआवजे की घोषणा की है।
साथ ही, उन्होंने वन विभाग को आदेश दिया है कि भविष्य में ऐसे हमलों की रोकथाम के लिए जंगल-सीमा की निगरानी, कैमरा ट्रैप्स, और नाइट पेट्रोलिंग को और मज़बूत किया जाए।
वन अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया गया है कि जिन इलाकों में बाघों की आवाजाही बढ़ी है, वहाँ पर “अलर्ट जोन” घोषित किए जाएँ और ग्रामीणों को जागरूक किया जाए।
अन्य राज्यों में भी बढ़ रहा है जंगल-मानव संघर्ष
यह समस्या केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं है।
अक्टूबर में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु के सत्यamangalam टाइगर रिजर्व (STR) के अंदर अवैध रिसॉर्ट्स और टूरिस्ट लॉज पर सख्त कार्रवाई का आदेश दिया था।
पश्चिम बंगाल के जलदापारा नेशनल पार्क में पिछले साल वन विभाग ने एक अवैध रिसॉर्ट को ध्वस्त किया था जिसकी कीमत ₹2 करोड़ बताई गई थी।
वहीं मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में भी एक आईआरएस अधिकारी और उनकी पत्नी पर अवैध होमस्टे और सॉ-मिल चलाने का आरोप लगा था।
ये घटनाएँ बताती हैं कि देशभर में पर्यटन और विकास के नाम पर जंगलों में अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है, जिससे वन्यजीवों और इंसानों के बीच दूरी घट रही है — और यही टकराव की सबसे बड़ी वजह बन रही है।
विशेषज्ञों की राय — संरक्षण और सह-अस्तित्व की ज़रूरत
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि बाघ, तेंदुए और अन्य शिकारी जीव अपने प्राकृतिक क्षेत्र से तभी बाहर आते हैं जब भोजन, पानी या जगह की कमी होती है।
जैसे-जैसे जंगल का क्षेत्र सीमित हो रहा है, वैसे-वैसे मनुष्य और वन्यजीवों के रास्ते टकरा रहे हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि—
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जंगल-सीमा पर बफर ज़ोन बनाया जाए,
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ग्रामीणों को वैकल्पिक रोजगार दिया जाए,
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और वन्यजीव संरक्षण को स्थानीय लोगों के सहयोग से जोड़ा जाए।
केवल सख्ती से नहीं बल्कि संवेदनशील योजना से ही इस संघर्ष को कम किया जा सकता है।
चेतावनी और सबक
सारगुर, मैसूरु की यह घटना सिर्फ एक दुखद हादसा नहीं है, बल्कि यह चेतावनी है कि अगर जंगल और मानव-क्षेत्रों के बीच संतुलन नहीं बनाया गया तो आने वाले समय में ऐसे हादसे बढ़ते रहेंगे।
राज्य-सरकार ने जो कदम उठाए हैं — जैसे अवैध रिसॉर्ट्स पर कार्रवाई, मुआवजे की घोषणा और निगरानी व्यवस्था — ये शुरुआती उपाय हैं, पर असली समाधान तभी होगा जब “संरक्षण और सह-अस्तित्व” को एक साथ लागू किया जाए।
बाघ जंगल का राजा है, लेकिन इंसान के लालच ने अब उसके घर को छोटा बना दिया है — और यही असली संघर्ष की जड़ है।



