
दंकुनी में तीसरी मौत – पश्चिम बंगाल के होगली जिले के दंकुनी नगर पालिका के वार्ड-20 में रविवार रात एक 60 वर्षीय महिला की सड़क पर ही मृत्यु हो जाने के बाद राजनीति तथा सामाजिक चिंता दोनों ही तेज़ हो गई है। इस महिला का नाम था हसीना बेगम, जो अपनी बेटी के साथ वार्ड-20 में निवास करती थीं। All India Trinamool Congress (तृणमूल) ने इस घटना को उस विवादास्पद प्रक्रिया — Special Intensive Revision (SIR) — से संबंधित तीसरी मौत बता कर एक गंभीर आरोप पेश किया है।
घटना के विवरण के मुताबिक, हसीना बेगम रविवार रात एक दुकान से लौट रही थीं, तभी उन्होंने अचानक सड़क पर गिर कर दम तोड़ दिया। स्थानीय अस्पताल ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। घटना के अगले दिन तृणमूल ने एक टेक्स्ट जारी कर इसे “SIR के कारण उत्पन्न तीसरी मौत” बताया।
स्थानीय निवासी बताते हैं कि हसीना बेगम को SIR की घोषणा के बाद से ही बेचैनी, चिंता और भय का अनुभव हुआ कर रहा था। उनकी बेटी के साथ रहनेवाले एक पड़ोसी ने मीडिया से कहा: “वो बैठक में गई थी, वार्ड-20 की बैठक जिसमें SIR पर चर्चा हो रही थी। वहां वह बहुत चिंतित दिखीं, एहसास था कि उनके नाम की स्थिति ठीक नहीं है।”
वास्तव में, बताया गया है कि हसीना बेगम का नाम उस 2002-के मतदाता सूची में नहीं मिला था, जो इस वर्तमान SIR प्रक्रिया में एक कट-ऑफ डेट मानी गई है। स्थानीय नगरपालिका अध्यक्ष हसीना शबनम ने मीडिया को बताया कि जब वे परिवार से मिलीं तो यह बात सामने आई कि हसीना का नाम 2002 सूची में नहीं था और इस कारण वह “क्या होगा मेरे साथ और मेरे बच्चों के साथ?” इस डर में थीं।
तृणमूल की तरफ से यह आरोप लगाया गया है कि SIR केवल एक “वोटर लिस्ट सफाई” का काम नहीं है बल्कि भय उत्पन्न करने, वोटरों को हतोत्साहित करने और कुछ मामलों में मतदाता अधिकार छीनने का माध्यम बन गया है। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि “आइए देखें, [Amit Shah ने स्वयं कहा है कि इसे मतदाता सूची से हटाने और डिपोर्ट करने का टूल माना जा रहा है।” इसके साथ तृणमूल ने इसे भाजपा-प्रायोजित डर की रणनीति कहा है।
इस क्रम में पिछले सप्ताह भी दो अन्य विचाराधीन मौतें दर्ज की गई थीं। एक 57 वर्षीय पुरुष (प्रदीप कर) ने उत्तर २४ परगना के पानीहाटी में SIR के कारण होने वाली चिंता का हवाला देते हुए आत्महत्या की, और एक दूसरे 95 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक (क्षितिश मजुमदार) ने बिर्भूम के इलमबज़ार में आत्महत्या कर ली थी। इन दोनों घटनाओं के बीच इस हालिया घटना ने राजनीतिक तापमान को और अधिक बढ़ा दिया है।
SIR अर्थात विशेष गहन मतदाता सूची संशोधन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे Election Commission of India द्वारा विभिन्न राज्यों में लागू किया जा रहा है ताकि मृत, प्रवासी, दोहरी नामांकन जैसे गलत मतदाता-प्रविष्टियों को हटाया जा सके और सुचारू चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित हो सके। हालांकि इस प्रक्रिया की समय-सीमा, दस्तावेज़ीकरण और कार्यान्वयन को लेकर व्यापक चिंताएं और विरोध भी हैं।
पश्चिम बंगाल में SIR की घोषणा के बाद से ही स्थानीय स्तर पर मतदाता दर्जी या सूची में नाम नहीं रहने जैसे भय की बातें सामने आई थीं। वार्ड-20 के निवासियों ने एक बैठक की थी जिसमें SIR के प्रभाव और संभावित परिणामों पर चर्चा हुई। उस बैठक में हसीना बेगम भी मौजूद थीं।
स्थानीय अधिकारी इस तरह के डर और बेचैनी को मान रहे हैं कि कुछ वोटर्स को यह चिंता थी कि यदि उनका नाम पुराने सूची (2002 या उससे पहले) में नहीं मिला तो उन्हें भविष्य में वोट डालने का अधिकार छिन सकता है। सत्ता में मौजूद तृणमूल पार्टी इस डर को खूब प्रचारित कर रही है कि SIR के नाम पर “मतदाता अधिकार छीना जा रहा है” और वह इसका एक गंभीर विरोध कर रही है।
दूसरी ओर, भाजपा (और निर्वाचन आयोग) इस प्रक्रिया को “वोटर सूची को शुद्ध करने और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने” का कदम बता रही है। लेकिन इस बीच, SIR को लेकर यह चिंताएं सामने आई हैं कि इसके कार्यान्वयन में कौन-कौन दस्तावेज मांगे जाएंगे, नाम नहीं होने वालों को क्या विकल्प मिलेंगे, और समय-सीमा कैसे निर्धारित की गई है। उदाहरण के लिए, SIR प्रक्रिया का मुख्य ढाँचा यह है कि नाम मिल जाने वालों के लिए सरल प्रक्रिया है लेकिन नाम नहीं मिलने वालों को अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने होंगे।
ऐसे में यह बात सामने आती है कि एक सामान्य-नागरिक, विशेषकर गरीब या दस्तावेज-सुविधा नहीं रखनेवाले वोटर को डर है कि अचानक उनसे क्यों नाम नहीं पूछा गया, या अगर नाम नहीं मिला तो क्या होगा। जैसे कि इस दंकुनी की घटना में हुआ है — नाम सूची में ना होना, चिंता का कारण बना, और अंतिम परिणाम बेहद दुर्भाग्यपूर्ण रहा।
इस पूरी गम्भीर स्थिति में यह कहा जा रहा है कि राज्य के मतदाता प्रमुख रूप से भय, चिंता और अनिश्चितता की स्थिति में हैं। तृणमूल ने इसे भाजपा द्वारा इस्तेमाल की जा रही एक डर-उत्पन्न युक्ति कहा है, और इस तरह का राजनीतिकरण सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों में तेज हुआ है।
उर्दू-हिंदी भाषा में सरल शब्दों में समझें: एक 60 वर्षीय महिला का नाम सूची में नहीं था, उसने डर महसूस किया कि उसका वोटर कार्ड या नाम मतदाता सूची में से निकल जाएगा, और उसी डर से उसकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ी, स्थानीय लोग मानते हैं। इसकी वजह से उसे अचानक गिरावट आई और मृत्यु हो गई। इस तरह एक प्रशासनिक प्रक्रिया का प्रत्यक्ष प्रभाव एक आम नागरिक की मौत के रूप में सामने आया है।
इस पूरे घटनाक्रम से उठ रहे सवालों में प्रमुख हैं:
-
क्या SIR प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और संवेदनशील तरीके से लागू किया गया है?
-
क्या नाम नहीं होने वालों को समय-समय पर सुझाव, मदद और दस्तावेज जमा करने का पर्याप्त अवसर मिला?
-
क्या इस तरह की प्रक्रिया आरंभ करते समय इस तरह की भय-भावना और मानसिक दबाव को ध्यान में रखा गया था?
-
क्या मरने वालों, निराश हुए वोटर्स की जिम्मेदारी से किसी स्तर पर समीक्षा होगी?
-
क्या प्रशासनिक रूप से स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य जैसे अप्रत्याशित प्रभावों का भी अनुमान लगाया गया था?
स्थानीय स्वास्थ्य प्रणाली, सामाजिक समर्थन नेटवर्क और प्रशासनिक जागरूकता इन सभी का परीक्षण अब हो रहा है। इस घटना ने बतलाया है कि मात्र प्रशासनिक सूची संशोधन प्रक्रिया भी आम लोगों के मन में डर और बेचैनी पैदा कर सकती है, खासकर जब उन्हें लगता है कि उनकी भागीदारी या नामांकन जोखिम में है।
अतः दंकुनी की यह घटना सिर्फ एक दुखद मौत नहीं बल्कि एक संकेत है — कि सार्वजनिक प्रशासनिक निर्णयों के प्रभाव आम-जन तक किस प्रकार पहुँच सकते हैं और किस तरह उस प्रक्रिया का भय-भूत पक्ष जनमानस में उभर सकता है। यदि सही दिशा-निर्देश, पारदर्शिता, समय-सीमा, और वोटर सहायता नहीं मिली तो SIR जैसी प्रक्रिया लोकतांत्रिक भागीदारी के विपरीत काम कर सकती है। जैसे कि एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहले कहा है: “वोटर्स को डर में नहीं रखना चाहिए; उन्हें भरोसा देना चाहिए।”
इसलिए यह मामला एक चेतावनी-घंटी की तरह भी है कि जब तक-तक प्रशासन, चुनाव आयोग, राजनीतिक दल एवं नागरिक समाज मिलकर काम नहीं करेंगे, प्रक्रिया का लाभ तभी होगा जब हर वोटर सुरक्षित, आश्वस्त और सक्रिय महसूस करे।
अगर आप चाहें, तो मैं इस घटना के साथ-साथ वार्ड-20 दंकुनी में मतदान एवं मतदाता सूची स्थिति का विस्तृत विश्लेषण भी तैयार कर सकता हूँ, जिसमें स्थानीय प्रभावितों के बयान, प्रशासनिक प्रतिक्रिया और आगे की संभावनाएँ शामिल हों।



