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Harvard University Trump $500 Million Deal: कैंपस नीतियों को लेकर महीनों से चल रही जंग

Harvard University Trump $500 Million Deal: क्या है पूरा मामला?

अमेरिकी राजनीति और शिक्षा जगत में इन दिनों सबसे बड़ी सुर्खियां हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के बीच चल रही खींचतान को लेकर हैं। लंबे समय से कैंपस नीतियों, प्रोटेस्ट और फंडिंग को लेकर विवाद जारी था और अब खुद राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया है कि उनकी सरकार हार्वर्ड के साथ लगभग 500 मिलियन डॉलर के एक बड़े समझौते के करीब है।

ट्रंप ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह डील लगभग फाइनल स्टेज पर है और शिक्षा सचिव लिंडा मैकमैहन इसके अंतिम विवरणों को तैयार कर रही हैं। ट्रंप ने संकेत दिया कि इस समझौते में केवल आर्थिक भुगतान ही नहीं, बल्कि हार्वर्ड को ट्रेड स्कूल चलाने और AI जैसी आधुनिक तकनीक की पढ़ाई कराने की भी शर्त होगी।


ट्रंप प्रशासन का दबाव और विवाद

ट्रंप प्रशासन कई महीनों से हार्वर्ड और अन्य प्रतिष्ठित आइवी लीग विश्वविद्यालयों पर दबाव बना रहा है। प्रशासन का आरोप है कि इन यूनिवर्सिटीज़ ने कैंपस पर प्रो-फिलिस्तीन प्रदर्शन को बढ़ावा दिया, जिसमें कई बार यहूदियों के खिलाफ भेदभाव और एंटीसेमिटिज़्म जैसे आरोप लगे। ट्रंप ने बार-बार कहा है कि हार्वर्ड जैसे संस्थान आलोचनात्मक विचारों के नाम पर नफरत फैलाने की इजाज़त दे रहे हैं।

हालांकि प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार फिलिस्तीन के अधिकारों की वकालत को गलत तरीके से उग्रवाद या यहूदी-विरोधी भावना से जोड़ रही है। कई यहूदी समूहों ने भी कहा कि गाज़ा युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन को एंटीसेमिटिज़्म कहना गलत है।


हार्वर्ड पर सरकारी कार्रवाई और कानूनी लड़ाई

ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड पर दबाव बनाने के लिए कई कठोर कदम उठाए। इसमें शामिल है:

  • यूनिवर्सिटी के 2 बिलियन डॉलर से ज्यादा के रिसर्च फंडिंग को खत्म करने की कोशिश

  • अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर रोक लगाने की धमकी

  • विश्वविद्यालय की मान्यता (accreditation) पर सवाल उठाना

  • सिविल राइट्स लॉ के उल्लंघन का हवाला देकर फंडिंग बंद करने की प्रक्रिया शुरू करना

हार्वर्ड ने इसे सीधी राजनीतिक प्रताड़ना बताया और अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत में हार्वर्ड ने कहा कि ट्रंप प्रशासन उसकी फ्री स्पीच और अकादमिक स्वतंत्रता का हनन कर रहा है।

सितंबर की शुरुआत में बोस्टन की एक संघीय अदालत ने ट्रंप प्रशासन को करारा झटका दिया। जज एलिसन बरोज़ (जिनकी नियुक्ति ओबामा ने की थी) ने आदेश दिया कि सरकार अंतरराष्ट्रीय छात्रों को रोक नहीं सकती और न ही रिसर्च फंडिंग बंद कर सकती है। हालांकि इसके बावजूद प्रशासन ने हार्वर्ड पर कार्रवाई जारी रखी और स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग (HHS) ने चेतावनी दी कि हार्वर्ड को भविष्य में सरकारी अनुबंधों से पूरी तरह बाहर किया जा सकता है।


अन्य आइवी लीग संस्थान भी निशाने पर

हार्वर्ड अकेली यूनिवर्सिटी नहीं है जो ट्रंप प्रशासन के निशाने पर है। हाल के महीनों में कोलंबिया यूनिवर्सिटी और ब्राउन यूनिवर्सिटी भी समझौते कर चुकी हैं।

  • कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने 220 मिलियन डॉलर सरकार को देने और कई प्रशासनिक शर्तें मानने पर सहमति जताई।

  • ब्राउन यूनिवर्सिटी ने 50 मिलियन डॉलर स्थानीय वर्कफोर्स डेवलपमेंट प्रोग्राम में निवेश करने का वादा किया।

इससे साफ है कि ट्रंप प्रशासन अमेरिका के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों पर कड़ा नियंत्रण स्थापित करना चाहता है।


हार्वर्ड का संकट और भविष्य की चिंता

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक अध्यक्ष एलन गार्बर ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर सरकार की कार्रवाई ऐसे ही जारी रही तो विश्वविद्यालय को हर साल करीब 1 बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है। इससे स्टाफ की छंटनी, हायरिंग फ्रीज और अकादमिक रिसर्च पर गहरा असर पड़ेगा।

यूनिवर्सिटी ने दावा किया है कि सरकार उसे अपनी गवर्नेंस, हायरिंग और अकादमिक प्रोग्राम्स बदलने के लिए मजबूर कर रही है, जो सीधे तौर पर शिक्षा जगत की आज़ादी के खिलाफ है।


छात्रों पर असर

हार्वर्ड के कैंपस विवाद का सबसे ज्यादा असर छात्रों पर पड़ रहा है। गाज़ा युद्ध और अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के बाद यूनिवर्सिटी में यहूदी और मुस्लिम छात्रों दोनों को भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा।

यह माहौल छात्रों की पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर असर डाल रहा है। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय छात्र अपने भविष्य को लेकर डरे हुए हैं, वहीं स्थानीय छात्र फंडिंग कटौती की वजह से रिसर्च और स्कॉलरशिप खोने की चिंता में हैं।


सौदे से क्या मिलेगा?

अगर यह सौदा होता है तो हार्वर्ड सरकार को 500 मिलियन डॉलर का भुगतान करेगा और ट्रेड स्कूल जैसी नई शैक्षणिक इकाइयाँ चलाएगा। इनमें AI, इंजन टेक्नोलॉजी और आधुनिक स्किल ट्रेनिंग शामिल होंगी।

ट्रंप प्रशासन इस सौदे को अपने एजेंडे की जीत के रूप में पेश करेगा, जबकि हार्वर्ड इसे अपने अस्तित्व और फंडिंग को बचाने की मजबूरी के रूप में देख सकता है।


निष्कर्ष

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और अमेरिकी सरकार के बीच यह टकराव केवल एक विश्वविद्यालय का मामला नहीं है, बल्कि यह अमेरिका में शैक्षणिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और सरकारी नियंत्रण के बीच खींचतान का बड़ा उदाहरण है।

जहां एक ओर सरकार का कहना है कि वह नफरत और भेदभाव रोकने की कोशिश कर रही है, वहीं आलोचक इसे राजनीतिक हस्तक्षेप मान रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह डील किस रूप में होती है और इसका असर न सिर्फ हार्वर्ड बल्कि पूरी अमेरिकी उच्च शिक्षा प्रणाली पर कैसा पड़ता है।

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