सोनिया मिश्रा/रुद्रप्रयाग.उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाट गांव की रहने वाली मंजू शाह ने अपनी बेजोड़ हस्तशिल्प कला से पहाड़ के जंगल में उगने वाले चीड़ के पत्ते (पिरूल) से जीवनयापन का जरिया खोज निकाला है. इस वजह से उन्हें प्रदेश में ‘पिरूल वुमेन’ की पहचान मिली है. लोग उन्हें इसी नाम से पहचानने लगे हैं. मंजू पिरूल से टोकरी, पूजा थाल, फूलदान, आसन, पेन स्टैंड, डोरमैट, टी कोस्टर, डाइनिंग मैट, ईयररिंग, फूलदान, मोबाइल चार्जिंग पॉकेट, पर्स, हैट, पेंडेंट, अंगूठी, सहित तमाम तरीके के साज-सज्जा के उत्पाद बना रही हैं,जो लोगों को बेहद पसंद आ रहे हैं. साथ ही इससे लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है.
मंजू शाह ने बताया कि वह अल्मोड़ा जिले के राजकीय इंटर कॉलेज ताड़ीखेत में प्रयोगशाला सहायक पद पर कार्यरत हैं. पिरूल के इस तरह के इस्तेमाल की वजह से उन्हें एक अलग पहचान मिली है.अपनी बेजोड़ हस्तशिल्प कला की वजह से उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है. साथ ही उनसे पहाड़ की महिलाएं भी अब सीख लेकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं. उन्होंने बताया कि वह इन दिनों रुद्रप्रयाग जिले के पुस्तकालय गांव मणिगुह में महिलाओं को पिरूल से विभिन्न प्रकार के साज-सज्जा उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण दे रही हैं. प्रशिक्षण कार्यशाला में ग्रामीण महिलाएं बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं.
प्रोडक्ट्स ऑनलाइन भी है उपलब्ध
अगर आप भी पिरूल से बने इन प्रोडक्ट्स को खरीदना चाहते हैं, तो आप इन्हें ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से खरीद सकते हैं. पिरूल से बने उत्पाद कई शॉपिंग वेबसाइट पर उपलब्ध हैं.आप इस नंबर 7579140493 पर कॉल कर अपने सामान की बुकिंग भी करवा सकते हैं.
चीड़ की पत्तियां होती है तीव्र ज्वलनशील
गौरतलब है कि उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों में अधिकांश हिस्सेदारी चीड़ के जंगलों की है. बसंत के बाद चीड़ की पत्तियां गिरती हैं, जो काफी ज्वलनशील होती हैं. पहाड़ों पर अधिकांश आग लगने की घटनाएं इन्हीं पत्तियों के कारण होती हैं. हर साल 50 लाख टन से अधिक पिरुल जंगलों से गिर रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक, तकरीबन 71 प्रतिशत वन भू-भाग वाले उत्तराखंड में चीड़ ने 15 फीसदी जंगल पर कब्जा कर लिया है, जबकि बांज के जंगल सिमटकर 13 फीसदी रह गए हैं, जो जैव विविधता के साथ ही साथ मिट्टी की नमी को खत्म करने का काम कर रहा है.
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FIRST PUBLISHED : June 30, 2023, 09:56 IST