
India vs Singapore Work Culture: एक भारतीय युवक द्वारा सिंगापुर और भारत की वर्क कल्चर की तुलना करते हुए बनाया गया वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर जबरदस्त चर्चा में है। इस वीडियो ने न सिर्फ लाखों लोगों का ध्यान खींचा है, बल्कि भारत में काम करने वाले युवाओं के दिल की बात भी सामने रख दी है। यह युवक, जिनका नाम अमन बताया जा रहा है, वर्तमान में सिंगापुर में काम कर रहे हैं और उन्होंने अपने इंस्टाग्राम वीडियो के जरिए दोनों देशों की ऑफिस कल्चर का बेहद सटीक और भावनात्मक तुलना की है।
अमन ने अपने वीडियो में बताया कि भारत में जब वे नौकरी करते थे, तब छुट्टी लेना किसी जंग जीतने से कम नहीं था। उन्हें हर बार छुट्टी के लिए बहाने बनाने पड़ते थे, कभी तबीयत खराब होने का बहाना, कभी किसी रिश्तेदार की बीमारी तो कभी कोई पारिवारिक इमरजेंसी गढ़नी पड़ती थी। उन्होंने कहा कि शुक्रवार की एक साधारण सी छुट्टी के लिए भी उन्हें ऐसा महसूस होता था जैसे वे कोई गुनाह कर रहे हों।
वहीं सिंगापुर में स्थिति बिल्कुल उलट है। अमन के मुताबिक, यहां छुट्टी मांगनी नहीं पड़ती, सिर्फ सूचना देना काफी होता है। उन्होंने कहा कि शाम छह बजे के बाद उनका फोन सिर्फ उनका होता है, बॉस का नहीं। न कोई कॉल, न कोई काम का दबाव और न ही किसी तरह की guilt कि वे घर जाकर आराम कर रहे हैं।
अमन ने अपने अनुभव साझा करते हुए यह भी कहा कि भारत में देर रात तक ऑफिस में बैठकर काम करने को मेहनत और लगन के तौर पर देखा जाता है, जबकि सिंगापुर में इसे कमजोर मैनेजमेंट और कर्मचारियों के शोषण के रूप में देखा जाता है। उनका कहना था कि अगर कोई व्यक्ति रोज आठ-नौ बजे तक ऑफिस में बैठा रहता है, तो वह हार्डवर्किंग नहीं बल्कि एक्सप्लॉइटेड है।
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विदेश जाकर बदली सोच
अमन ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट के कैप्शन में लिखा कि सिंगापुर जाने के बाद उनकी सोच में सबसे बड़ा बदलाव यही आया कि अब उन्हें अपने समय की सफाई देने की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने कहा कि टॉक्सिक वर्क कल्चर में व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसे यह साबित करना पड़ता है कि वह क्यों काम नहीं कर रहा है। लोग अपनी निजी जिंदगी के बारे में जरूरत से ज्यादा जानकारी इसलिए साझा करते हैं ताकि उन्हें सहानुभूति या मंजूरी मिल सके।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि काम जरूरी है, लेकिन जिंदगी उससे भी ज्यादा जरूरी है। काम के नाम पर व्यक्ति की निजी जिंदगी छीन लेना किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता।
सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रियाएं
अमन का यह वीडियो बहुत तेजी से वायरल हो गया है और इस पर हजारों की संख्या में लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कई युवाओं ने इस वीडियो को देखकर भारत की टॉक्सिक वर्क कल्चर पर खुलकर नाराजगी जताई है।
एक यूजर ने लिखा, “उम्मीद है कि Gen Z इस सिस्टम को बदलेगी।” वहीं एक अन्य यूजर ने कहा, “मैं भी ऐसी ही वर्क कल्चर चाहता हूं।” कई लोगों ने यह भी स्वीकार किया कि वे भी भारत में इसी तरह के दबाव में काम कर रहे हैं। एक यूजर ने कमेंट में लिखा, “एक भारतीय होने के नाते मैं इस टॉक्सिक वर्क कल्चर से पूरी तरह जुड़ाव महसूस करता हूं।”
कुछ लोगों ने अमन की जिंदगी को ‘ड्रीम लाइफ’ बताते हुए उनकी तारीफ की, जबकि कई यूजर्स ने ईमानदारी से यह भी लिखा कि वे अमन से जलन महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऐसी संतुलित जिंदगी जीने का मौका नहीं मिलता।
भारत में वर्क कल्चर पर फिर उठा सवाल
यह वीडियो सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि भारत में काम कर रहे करोड़ों युवाओं की सच्चाई को बयां करता है। आज भी देश के कई प्राइवेट सेक्टर ऑफिसों में लंबा वर्किंग आवर, छुट्टी लेने में डर, बॉस का अत्यधिक दबाव और निजी जिंदगी में दखल आम बात है।
वर्क फ्रॉम होम के दौर के बाद भी कई कंपनियों में कर्मचारियों से उम्मीद की जाती है कि वे हर वक्त उपलब्ध रहें। फोन बंद करना, समय पर ऑफिस छोड़ना या अपनी फैमिली के लिए समय निकालना कई बार कर्मचारियों के लिए “कमिटमेंट की कमी” के तौर पर देखा जाता है।
सिंगापुर की वर्क लाइफ बैलेंस क्यों खास है?
सिंगापुर की कंपनियों में समय की पाबंदी और वर्क लाइफ बैलेंस को बहुत गंभीरता से लिया जाता है। वहां तय समय पर काम शुरू होता है और तय समय पर खत्म भी। कर्मचारी की निजी जिंदगी का पूरा सम्मान किया जाता है। अगर कोई छुट्टी लेता है तो उससे कोई सवाल-जवाब नहीं किया जाता।
इसके अलावा वहां मानसिक स्वास्थ्य को भी उतनी ही अहमियत दी जाती है, जितनी प्रोफेशनल परफॉर्मेंस को। इसीलिए वहां बर्नआउट, डिप्रेशन और वर्क स्ट्रेस जैसे मामले भारत के मुकाबले काफी कम देखने को मिलते हैं।
क्या भारत में भी बदलेगा सिस्टम?
अमन के वीडियो के वायरल होने के बाद एक बार फिर यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत में भी कभी ऐसा वर्क कल्चर आ पाएगा जहां कर्मचारी बिना डर के छुट्टी ले सके, समय पर घर जा सके और अपनी निजी जिंदगी को जी सके?
विशेषज्ञ मानते हैं कि नई पीढ़ी यानी Gen Z और मिलेनियल्स इस बदलाव की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। यह पीढ़ी पैसे के साथ-साथ मानसिक शांति और संतुलित जीवन को भी उतनी ही अहमियत देती है।
हाल के वर्षों में कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों और स्टार्टअप्स ने भारत में भी फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स, अनलिमिटेड लीव्स और 5-डे वर्किंग जैसे सिस्टम लागू किए हैं, लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में कंपनियां पुराने और कठोर नियमों पर ही चल रही हैं।
अमन की कहानी क्यों बन रही है प्रेरणा?
अमन की कहानी सिर्फ विदेश में नौकरी करने की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस मानसिक आजादी की कहानी है जिसकी तलाश भारत का हर कामकाजी युवा करता है। उनका वीडियो इस बात का प्रतीक बन गया है कि अगर सिस्टम सही हो, तो काम और जिंदगी दोनों को संतुलित तरीके से जिया जा सकता है।
इस वीडियो ने यह भी दिखा दिया है कि आज का युवा सिर्फ सैलरी नहीं, बल्कि सम्मान, स्वतंत्रता और मानसिक शांति भी चाहता है।



