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क्या Vodafone Idea Ltd को मिलेगा छूट? AGR कर्ज़ विवाद में मिला नया मोड़

भारत के दूरसंचार क्षेत्र में एक विवाद लंबे समय से चला आ रहा है, जिसमें तीसरे बड़े ऑपरेटर Vodafone Idea Ltd (Vi) की सरकारी देनदारियाँ (Adjusted Gross Revenue यानी AGR) मुख्य भूमिका में हैं। अब इस मामले में एक नया मोड़ आया है, जब Supreme Court of India ने यह स्पष्ट किया है कि सरकार के पास Vi के बकाए दायित्वों को फिर से देखकर नए तरीके से पुनर्संरचना (re-work) करने की अनुमति है। इस निर्णय ने इस विवाद को एक नए आयाम पर ला खड़ा किया है।

AGR का विवाद बहुत पुराना है। मूल रूप से AGR वह आय है जिसे दूरसंचार कंपनियों को सरकार को लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क के लिए देना होता है। लेकिन लंबे समय से इस बात पर बहस थी कि AGR की परिभाषा क्या होनी चाहिए — केवल कोर दूरसंचार सेवा से जुड़ी आय या उससे परे चली गई “नॉन-कोर” आय (जैसे संपत्ति बिक्री, किराया आदि) भी शामिल हो। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने AGR को व्यापक रूप से परिभाषित किया था, जिससे कंपनियों की देनदारियाँ बहुत बढ़ गई थीं।

Vodafone Idea के मामले में स्थिति यह है कि उसे AGR के तहत पहले से ही भारी बकाया था — विभिन्न रिपोर्टों में यह बताया गया है कि Vi करीब ₹83,400 करोड़ के AGR बकाए के अंतर्गत है, और जब ब्याज तथा जुर्माना मिल जाए, तो देनदारियाँ लगभग ₹2 लाख करोड़ के हिसाब से हैं।

हाल ही में सरकार की ओर से फिर एक तकरीबन ₹9,450 करोड़ का नया दावा किया गया है, जिसमें से Vi कह रही है कि ₹5,606 करोड़ का हिस्सा पहले से सुलझाए गए FY 2016-17 अवधि का है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही ‘क्रिस्टलाइज़ेशन’ किया हुआ फैसला दिया था।

इन परिस्थितियों में, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान एक बेन्च (मुख्य न्यायाधीश B. R. Gavai व अन्य न्यायाधीशों की) ने यह व्याख्यात्मक टिप्पणी की है कि यदि केंद्र (सरकार) चाहे तो नीति-क्षेत्र (policy domain) के अंतर्गत यह विषय देख सकती है। यानी, यह तकनीकी कानूनी विवाद जितना था, अब उसमें एक नीति-निर्माण (governmental policy) आयाम जुड़ गया है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने Vi में बड़े शेयरहोल्डिंग-रूप में हिस्सा लिया है (लगभग 49%), और लगभग 20 करोड़ ग्राहकों (subscribers) के हित भी इसमें शामिल हैं। इसलिए “यदि यूनियन (केंद्र) अपने विवेक से कोई निर्णय लेती है, तो उसे रोका नहीं जा सकता।”

इस तरह, अब यह मामला सिर्फ Vi का कर्ज़ मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह देखा जा रहा है कि सरकार क्या रणनीति अपनाएगी — क्या वह भुगतान समयसीमा बढ़ाएगी, ब्याज-जुर्माना माफ करेगी, या अन्य समायोजन करेगी। उदाहरण के लिए, इस विवाद के सामने कुछ विकल्प खुले हैं: पुरानी समयसीमा (2031 तक वार्षिक भुगतान) को लंबा खींचकर 2051 तक करना; जुर्माना-ब्याज में छूट देना; या फिर बकाए की राशि में पुनर्संयोजन करना।

Vi के लिए इस राहत का महत्व बहुत अधिक है। यदि सरकार से कुछ राहत मिलती है, तो Vi को अपनी नकदी प्रवाह (cash flow) में सुधार करने, नेटवर्क विस्तार व 5G-अनुभव में निवेश करने व बैंक-उधार (loans) ले पाने में मदद मिल सकती है। रिपोर्ट के अनुसार बैंक व वित्तीय संस्थान Vi की ओर देख रहे हैं क्योंकि उनका ARPU (average revenue per user) सुधर रहा है, ग्राहक-हानि कम हुई है, और नेटवर्क-निवेश के शुरूआती लाभ दिखाई दे रहे हैं।

साथ ही, सरकार के दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में निजी दूरसंचार बाजार में “तीन खिलाड़ी” (three-player) संरचना बनाए रखने का लक्ष्य है — Bharti Airtel Ltd, Vi और Reliance Jio Infocomm Ltd की प्रतिस्पर्धा। यदि Vi असमर्थ हो जाए, तो प्रतिस्पर्धात्मक संरचना खतरे में आ सकती है। यही कारण है कि नीति-निर्माताओं के बीच इस मामले में सक्रिय चर्चा चल रही है।

दूसरी ओर, इस प्रक्रिया में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि AGR सम्बन्धी देनदारियों पर पुनर्मूल्यांकन (re-assessment) नहीं होगी — विशेषकर 2016-17 तक की अवधि पर। इसलिए यदि सरकार राहत दे तो उसे न्यायसंगत और पारदर्शी ढंग से करना होगा ताकि अन्य कंपनियों या उद्योग में नए दावे न उठ खड़े हों।

Vi ने अपने आवेदन में यह भी तर्क दिया है कि DoT (Department of Telecommunications) ने उसके खिलाफ गलत गणना की है–कुछ हिस्से दोहरा दिए गए हैं, कुछ कटौती (deductions) सही तरीके से नहीं मानी गई हैं। ऐसे में उन्होंने मांग की है कि सभी AGR देनदारियों की पुनः समीक्षा की जाए।

अगर सरकार वास्तव में समयसीमा बढ़ाती है, ब्याज-जुर्माना माफ करती है, या राशि कम करती है, तो Vi की वित्तीय स्थिति सुधर सकती है, जिससे कंपनी को बैंक, एनबीएफसी व अन्य सोर्सेज से नए फंडिंग मिलने का मार्ग खुल सकता है। जो कि नेटवर्क-एक्सपैंशन व ग्राहक-सेवा सुधार के लिए जरूरी है। टेक्निकल विश्लेषक यह मान रहे हैं कि इस मामले में “थोड़ी राहत = निवेशकों व बैंकर्स के भरोसे में बढ़ोतरी” वाला सूत्र काम कर सकता है।

हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि यह निर्णय केवल Vi के विशेष मामले के लिए दिया गया है — सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह “विशिष्ट तथ्यों एवं परिस्थितियों” की पृष्ठभूमि में है, जहाँ सरकार का करीब 49 % हिस्सा है तथा करीब 20 करोड़ ग्राहकों का हित जुड़ा है। इसलिए प्रत्यक्ष रूप से इस निर्णय को अन्य ऑपरेटरों पर लागू नहीं माना जा सकता।

इस तरह, इस पूरे विवाद का सार यह है कि Vi के लिए एक राहत-द्वार खुला हुआ है, लेकिन उसे ठीक से बंद किया जाना होगा। सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि समाधान ऐसे हो जो उद्योग-संतुलन, वित्तीय स्वास्थ्य व ग्राहकों के हित को संयुक्त रूप से संतुलित करे। Vi को अपनी व्यावसायिक रणनीति-परिवर्तन, नेटवर्क-निवेश व फंडिंग-स्टोरी को तेज करना होगा ताकि आने वाले वर्षों में वह प्रतिस्पर्धा में टिक सके।

अगर हम निष्कर्ष निकालें — तो यह कहा जा सकता है कि अब यह मामला “सिर्फ कानूनी विवाद” नहीं रहा, बल्कि नीति-निर्माण-और-भविष्य-दूरसंचार-परिस्थितियों का हिस्सा बन गया है। और उन कंपनियों के लिए जो भारी व्याज-जुर्माना व देनदारियों के बोझ तले हैं, यह संकेत है कि उचित समय पर एवं स्थिति के अनुरूप राहत-प्रक्रिया संभव हो सकती है।

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