
जब कार्तिक कृष्ण‑पक्ष की चतुर्दशी आती है, यानी Bhoot Chaturdashi की रात, तब बंगाली घरों में एक अलग‑सी हलचल होती है। इस रात को कभी‑कभी ‘बंगाली हैंलोवीन’ भी कहा गया है, क्योंकि मान्यता है कि इस रात जीवित और मृत के बीच परदा कुछ पतला हो जाता है।
घर की बाहरी हवा में सर्द झोंके चलने लगते हैं, यहीं‑यहीं दरवाजे के पास दीपक जलाए जाते हैं—चोद्दो प्रदीप यानी १४ दीप। माना जाता है कि ये दीप घर के कोनों‑छोरों में जले हुए पूर्वजों की आत्माओं को मार्ग दिखाते हैं और साथ ही बुरे भूत‑प्रेतों को दूर रखते हैं।
साथ ही परंपरा है कि इस दिन चोद्दो शाक यानी १४ किस्म की पत्तेदार सब्जियाँ खाई जाएँ। ऐसा खाए जाने का कारण माना जाता है कि ये न सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक हैं बल्कि प्रतीक‑रूप में बुरी आत्माओं को प्रवेश न करने देंगे।
लेकिन इस रात का आकर्षण सिर्फ रिवाज‑रिवायत में नहीं है — साहित्य‑प्रेमियों के लिए यह एक विशेष अवसर है कि वे किन्हीं डरावने किस्सों में खो जाएँ, क्योंकि बंगाली साहित्य में भूत‑प्रेत की कहानियाँ लंबी‑चौड़ी परंपरा रखती हैं।
इस Bhoot Chaturdashi पर आइए एक नज़र डालते हैं पाँच ऐसी कथाओं पर, जो रात में पढ़ने पर आपकी हंसी‑ठिठोली को बदलकर थोड़ा सिहरन में बदल सकती हैं।
पहली है मोनिहारा — यह कहानी लिखी है रविंद्रनाथ टैगोर ने 1898 में। कहानी एक महिला मणिमालिका की है, जो गहनों की मोह में इतनी डूबी रहती है कि परिवार आर्थिक तंगी में होने के बावजूद उन गहनों को नहीं छोड़ती। पति फणिभूषण बेचने का विचार रखें, तो मणिमालिका नाव पर बैठकर भटक जाती है और अचानक गायब हो जाती है। फिर एक तूफानी रात मणिमालिका की गहनों‑मोह की प्रतिछाया फणिभूषण के सामने प्रकट होती है—और वहाँ से डरावनी हवा बहने लगती है। इस तरह टैगोर ने मोह, लोभ, आत्मा‑भटकन को परोसा है।
दूसरी कहानी है भुशुन्दिर মাঠে, जिसे लिखे हैं राजशेखर बसु (परशुराम के नाम से प्रसिद्ध)। 1924 की यह लघुकथा बताती है कि मृत्यु के बाद भी जिंदगी पूरी तरह खत्म नहीं होती। मुख्य पात्र शिबु मर जाता है औरghost यानी भूत बनकर एक तरह के जीवन में पहुँच जाता है। लेकिन उसे वहाँ की जिंदगी में शांति नहीं मिलती, क्योंकि उसका मन नए विवाह की चाह में फँसा रहता है। तब संघर्ष होता है जब उसकी नई दुल्हन उसका पुराना जीवन‑साथी निकलती है… भूत‑प्रेत की दुनिया में ये उलझन‑घुटन कुछ अलग ही मुकाम पर पहुंचती है।
तीसरी है अनाथ बाबুর भय — यह कथा लिखी है सत्यजीत रे ने। इसमें कथाकार एक विचित्र व्यक्ति, अनाथ बाबु से मिलता है — जो खुद को आत्माओं का वैज्ञानिक‑विश्लेषक कहता है। उसने जीवन यात्रा समर्पित की है आत्माओं को जानने‑समझने में, लेकिन अबतक उसे एक भी भूत नहीं दिखा। एक अंतिम प्रयास में वह हaldar बड़ी नामक हवेली‑घर पहुँचता है रात बिताने। चेतावनियों को अनसुना कर के‑लेकिन जो हुआ वो उसकी कल्पना से परे था। यहाँ डर का तड़का सिर्फ दृश्य में नहीं, भावना में है।
चौथी कहानी है बहुरूपी — यह है शरदिंदु बंद्योपाध्याय द्वारा लिखी एक रोचक कथा, जो बोरोदा सीरीज़ का हिस्सा है। इस कहानी में पाठक एक पत्र के माध्यम से सुनता है कि एक गाँव में रहने वाला व्यक्ति रात‑रात भर एक ऐसी आत्मा का सामना करता है जो प्रतिरूप बदल सकती है — किसी भी व्यक्ति का चेहरा धारण कर सकती है। जब उसके मित्र उस गाँव आते हैं, तो midnight इक अजीब खटखटाहट और एक रहस्यमयी आकृति उन्हें झकझोर देती है।
पाँचवीं कहानी है एक रातिर अतिथि — लेखक गजेंद्र कुमार मित्र द्वारा। इसमें अनिमेश नामक कथाकार देर रात नाव से एक दूर के गाँव पहुँचता है ताकि शहर‑बस पकड़ सके। लेकिन बस छूट गई होती है। वहाँ उसे जनयिको साधक नाम का एक सज्जन व्यक्ति मिलता है जो उसे रात बिताने को कहता है। शुरुआत तो सामान्य‑सी लगती है, पर जैसे‑जैसे रात गहराती है, सादे से प्रतीत हो रहे कमरे में एक भयानक ज़ाल बनने लगता है—और अनिमेश महसूस करता है कि वो सपने‑और‑जाग्रत के बीच कहीं फँस गया है।
इन कहानियों को पढ़ते समय आप महसूस करेंगे कि बंगाली साहित्य में डर‑ह्रदयस्पर्शी भावों को कितनी बारीकी से बुना गया है। डर को सिर्फ चौंकाने के लिए नहीं, बल्कि मन के भीतर काम करने के लिए लिखा गया है। इसी कारण भूत चतुर्दशी की रात में इन्हें पढ़ना‑बहुत‑ज़्यादा‑मजेदार अनुभव बन जाता है।
यह रात हमें यह याद दिलाती है कि‑ हमारी जड़ें, हमारे पूर्वज, और हमारी सावधानी — तीनों एक साथ चलते हैं। दीपक‑प्रदीप, शाक‑पत्ते, कहानियाँ‑किस्से, सभी सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि स्मरण और सुरक्षा के प्रतीक हैं। जैसे कि एक लेख में कहा गया है: “यह रात डर का जश्न नहीं, बल्कि अस्तित्व का शांति‑क्षण है।”
तो इस भूत चतुर्दशी की रात, जब बाहर ठंडी हवा चले और घर में हल्की‑सी सन्नाटा हो, तब एक आरामदायक कोने में बैठकर ये कहानियाँ खोलिए। दीपक जला दीजिए, सात‑आठ पन्ने पलटिए, और महसूस कीजिए वह थोड़ा सा सिहरन मिलना कि ये सिर्फ कहानियाँ नहीं हैं।


