
रिशभ शेट्टी की नई फिल्म “Kantara Chapter 1” एक ऐतिहासिक‑मिथक प्रीक्वल है, जो 2022 की सुपरहिट फिल्म Kantara की जड़ों को उजागर करती है। इस नई कड़ी में जंगल, दैवीय शक्तियाँ और आदिवासी समुदायों की जीवनशैली प्रमुख तौर पर सामने आती है। फिल्म अपनी तकनीकी क्षमता, विशाल बजट और दृश्य सौंदर्य के ज़रिए देखे जाने वाली फिल्मों में एक अलग दर्जा बनाने की कोशिश है।
कहानी की शुरुआत आदिवासी समुदाय और Kadamba राजवंश के टकराव से होती है। जंगल का वह पवित्र क्षेत्र जिसे “Eshwara Hoothota / God’s Garden” कहा जाता है, आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का केंद्र है। राजाओं की लालसा है कि वह इस क्षेत्र पर कब्जा करें; यह सिर्फ ज़मीन की भूख नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा की लड़ाई है। वहीं आदिवासी Berme (रिशभ शेट्टी) का किरदार है जो अपनी धरती, अपने लोगों और उनकी आत्मा के लिए खड़ा होता है। जब राजकुमार Kulasekhara (गुलशन देवैया) इस जंगल में घुसने की कोशिश करता है, तो संघर्ष बढ़ जाता है।
दृश्य और निर्माण‑शैली
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है उसका निर्माण कार्य और तकनीकी विस्तार। जंगल की हर शाखा, नदी की हर लहर, और पेड़ों के बीच की आर्द्रता — सब कुछ स्क्रीन पर महसूस होता है। सिनेमैटोग्राफर अरविंद कश्यप ने जंगल को जीवंत बना दिया है, और VFX का उपयोग स्पष्ट रूप से बढ़ा है। कहीं‑कहीं दृश्यों में CGI बहुत खूबसूरती से मिलती है। ध्वनि डिजाइन, संगीत और बैकग्राउंड स्कोर ऐसे हैं कि दृश्य कुछ पल ऐसे आते हैं कि जान‑o‑मन में गूंज उठे।
लेकिन इस भव्यता के साथ कुछ चुनौतियाँ भी आती हैं। फिल्म का पहला हिस्सा, जहाँ कथा को स्थापित किया जाता है, थोड़ा धीमा है। बहुत सारे दृश्य‑परिचय और पात्रों की भूमिका जल्दी‑जल्दी सामने आ जाती है जिससे फोकस थोड़ा इधर‑उधर हो जाता है। संवादों और हास्य के कुछ हिस्से गंभीरता की ताना‑बाना को बाधित कर देते हैं। विशेष रूप से, जब युद्ध या संघर्ष की तनिका पल होती है, वहाँ हास्य अचानक घुस आता है, जो अनुभव को कुछ हद तक चटक दिखने लगती है।
कलाकारों की भूमिका
रिशभ शेट्टी की मौजूदगी फिल्म का आधार है। उनका Berme चरित्र आदिवासी नेता है, वीरता, धर्म और मानवता का संगम बने हुए है। उन्होंने जिस तरह दैवीय प्रेत, आक्रोश और आस्था का मिश्रण निभाया है, वह प्रभावित करता है।
रुक्मिणी वसंत (Kanakavathi) को भी कहानी में पर्याप्त जगह मिली है। उनकी भूमिका सिर्फ साज‑सँवार की नहीं है, बल्कि भावना और मौलिकता से भरी है। गुलशन देवैया (Kulasekhara) ने विरोधी का रूप धारण कर जो खून‑खराबे और उसकी महत्वाकांक्षा को दिखाया है, वह पात्रों के बीच टकराव को और तीव्र करता है। जयाराम का राज्य‑नाटकीय रूप और शाही दबदबा कहानी की गंभीरता बढ़ाते हैं।
कहानी का प्रभाव और भावनात्मक गुंजन
“कांतारा: Chapter 1” सिर्फ़ एक युद्ध कथा नहीं है; यह एक आदिवासी समुदाय की आस्था, उनके संस्कृति, जंगल और उनके देवी‑देवताओं के प्रति श्रद्धा की कहानी है। भूमि के अधिकार, पहचान और न्याय की लड़ाई फिल्म की आत्मा है।
बीच‑बीच में दृश्य ऐसे आते हैं जो दिल को छू जाते हैं — जंगल में संघर्ष, दिव्य शक्ति की झलक, और लोगों की लड़ाई की तीव्रता। हालांकि, इस प्रेरणा और गहराई को हमेशा समान रूप से पकड़ना आसान नहीं होता क्योंकि फिल्म प्रारंभ में बहुत सारे विवरण जमाने में व्यस्त रहती है।
कमजोर पहलू और सुझाव
फिल्म के शुरुआती हिस्से में जो धीमी गति है, वह कुछ दर्शकों की सहनशक्ति पर कड़ी परीक्षा लगाती है। पात्रों की भूमिका‑विस्तार, संवादों की लंबाई और कथानक की अधिक जटिलताएँ कहीं‑कहीं कहानी को बोझिल बनाती हैं।
इसके अलावा, जब फिल्म उत्साह और दृश्यता से भर जाती है, तब हास्य के कुछ हिस्से उस भारी मनोभाव को हलका कर देने की कोशिश करते हैं, लेकिन अक्सर वह संतुलन बिगाड़ देते हैं।
अगर कुछ समय कम हो जाता, या द्वितीय अर्ध की ओर कथा का प्रवाह थोड़ा तेज़ होता, तो फिल्म और भी दमदार लगती।
समग्र निष्कर्ष
कांतारा: Chapter 1 एक साहसिक प्रयास है — भरी‑पूरी कल्पना, मिथकों का ताना‑बाना और आदिवासी संघर्ष को बड़े पैमाने पर प्रस्तुत करना। यह फिल्म अपने दृश्य अनुभव, संगीत, वातावरण और कलाकारों की भूमिका के कारण बड़े पर्दे पर देखने लायक है।
हालाँकि यह उस भाव‑गहराई में नहीं उतर पाती जितनी पहली कांतारा ने की थी, लेकिन दूसरी हिस्सों में जब कहानी चरम पर पहुँचती है, तब यह पूरे अनुभव को जीवंत कर देती है।
अगर आप फिल्म‑प्रेमी हैं और महाकाव्य, मिथक और आदिवासी कल्चर की कहानियों से छूने वाला सिनेमैटिक आनंद चाहते हैं, तो यह फिल्म आपका समय व उत्साह झटकने वाली होगी।
समीक्षा की रेटिंग
मेरी राय में, 5 में से 3.5 सितारे हैं। शुरुआत कुछ मंत्रालयों की तरह धीमी, लेकिन दूसरी हिस्सों में जाकर यह फिल्म एक धड़कन‑उठा देने वाला अनुभव बन जाती है।