
कोलम्बिया में राहुल गांधी का बड़ा बयान: “बीजेपी‑RSS की सोच डर पर आधारित, ताकतवर से डरते हैं, कमजोरों पर वार करते हैं”
BJP RSS Ideology Cowardice: कोलम्बिया की प्रतिष्ठित EIA यूनिवर्सिटी में छात्रों से बातचीत के दौरान, कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भारतीय राजनीति की सबसे मजबूत विचारधारात्मक धारा—बीजेपी और आरएसएस—पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि इस विचारधारा की जड़ें भय और कायरता में हैं।
राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी‑RSS की सोच ये है कि अगर सामने कोई कमज़ोर है, तो उस पर दबाव बनाया जाए, लेकिन अगर विरोधी ताक़तवर हो, तो टकराव से बचा जाए। उन्होंने एक उदाहरण के तौर पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर का वह बयान याद दिलाया जिसमें उन्होंने चीन के बारे में कहा था, “चीन हमसे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली है, हम उनसे कैसे भिड़ सकते हैं?”
गांधी ने इस कथन को बीजेपी की सोच का प्रतिबिंब बताया। उन्होंने कहा, “यही सोच उनकी विचारधारा की पहचान है—कमजोर के खिलाफ आक्रामकता और ताकतवर के सामने चुप्पी।”
राहुल गांधी ने अपने भाषण में हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि सावरकर ने अपनी किताब में एक घटना का उल्लेख किया है, जिसमें वे और उनके कुछ साथी एक अकेले मुस्लिम व्यक्ति को पीटते हैं और इस पर संतुष्टि महसूस करते हैं। राहुल ने इसे कायरता का प्रतीक बताया। “अगर पांच लोग मिलकर एक इंसान को मारते हैं और फिर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं, तो यह शक्ति नहीं, बल्कि डर और अहंकार की मिसाल है,” उन्होंने कहा।
भारत की विविधता पर मंडराता खतरा
राहुल गांधी ने अपने भाषण में सिर्फ विचारधारा की आलोचना नहीं की, बल्कि यह भी कहा कि इस सोच से भारत का लोकतांत्रिक ढांचा और सांस्कृतिक विविधता खतरे में है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से बहुधर्मी, बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश रहा है। यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। लेकिन आज इस विविधता को दबाने की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार और आरएसएस देश को एक एकरूप विचारधारा में ढालना चाहते हैं, जहां विरोध या मतभेद के लिए कोई जगह नहीं है। उनका कहना था कि भारत चीन की तरह कभी नहीं बन सकता, जहां सब कुछ केंद्रीकृत और नियंत्रित है। भारत की आत्मा उसकी विविधता में बसती है, और उसे दबाकर एक राष्ट्र नहीं बनाया जा सकता।
राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा कि लोकतंत्र सिर्फ वोट डालने तक सीमित नहीं है। यह विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी, बहस की संस्कृति और सामाजिक न्याय की व्यवस्था है। उनका मानना है कि सत्तारूढ़ दल सिर्फ अपनी प्रशंसा सुनना चाहता है और आलोचना या असहमति को खत्म करने की कोशिश करता है।
भारत बनाम चीन: लोकतांत्रिक बनाम केंद्रीकृत मॉडल
राहुल गांधी ने भारत और चीन की शासन प्रणालियों की तुलना करते हुए कहा कि दोनों देशों की संरचनाएं एकदम अलग हैं। चीन एक केंद्रीकृत, सख्त और नियंत्रणात्मक व्यवस्था में विश्वास करता है। वहां सत्ता एक ही जगह केंद्रित होती है और हर व्यक्ति को उसी दिशा में चलना होता है।
वहीं भारत, उनकी नजर में, एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहां विभिन्न भाषा, धर्म और सांस्कृतिक परंपराएं मौजूद हैं। भारत का ताना-बाना इतना जटिल और बहुरूपी है कि उसे एक ही साँचे में ढालना संभव नहीं है। उन्होंने कहा, “भारत की संरचना ऐसी है कि उसे जबरन एक ही दिशा में नहीं चलाया जा सकता। विविधता को जगह देना ज़रूरी है।”
वैश्विक बदलाव और भारत की भूमिका
राहुल गांधी ने अपने संबोधन में वैश्विक ऊर्जा बदलावों और तकनीकी ट्रांजिशन की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि आज दुनिया ईंधन टैंक से बैटरी की ओर बढ़ रही है, पारंपरिक पेट्रोल इंजन को छोड़कर इलेक्ट्रिक मोटर की दिशा में बढ़ रही है।
उन्होंने बताया कि पहले ब्रिटेन ने कोयला और स्टीम इंजन के जरिए अपनी ताकत बढ़ाई, फिर अमेरिका ने पेट्रोल और आंतरिक दहन इंजन के जरिए अपना प्रभुत्व कायम किया। अब नई दौड़ इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की है, जिसमें अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं। उनका कहना था कि इस बदलाव में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन इसके लिए भारत को एक मजबूत लोकतांत्रिक उत्पादन प्रणाली विकसित करनी होगी।
बेरोजगारी: भारत की सबसे बड़ी चुनौती
उन्होंने कहा कि भारत की वर्तमान आर्थिक नीति सेवा-क्षेत्र (Service Sector) पर आधारित रही है, जिससे GDP तो बढ़ी है, लेकिन रोजगार उत्पन्न नहीं हुए हैं। युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रहीं, जिससे हताशा और असंतोष का माहौल बन रहा है।
उन्होंने अमेरिका का उदाहरण दिया कि कैसे वहां ट्रंप समर्थक ज़्यादातर वे लोग हैं जिन्होंने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अपनी नौकरियां खो दीं। राहुल गांधी ने सुझाव दिया कि भारत को चीन की तरह उत्पादन क्षमता तो विकसित करनी है, लेकिन उसे एक लोकतांत्रिक और भागीदारी वाले मॉडल में करना होगा—जहां सरकार, उद्योग और समाज तीनों मिलकर काम करें।
अंत में राहुल गांधी का संदेश
राहुल गांधी के पूरे संवाद का सार यह था कि वे केवल एक राजनीतिक आलोचना नहीं कर रहे हैं, बल्कि एक विकल्प पेश कर रहे हैं। एक ऐसी सोच, जो डर पर नहीं, भरोसे पर आधारित हो। एक ऐसा लोकतंत्र, जो सिर्फ बहुमत से नहीं, विविधता, बहस और न्याय से चलता हो।
उन्होंने आगाह किया कि भारत आज विचारधारात्मक संघर्ष के दौर से गुजर रहा है—जहां सवाल ये है कि क्या हम विविधता को सम्मान देंगे या एकरूपता थोपेंगे? क्या राजनीति सिर्फ ताक़तवरों की आवाज़ होगी या आम लोगों की भी भागीदारी होगी?
उनका कहना था कि भारत को अगर एक मजबूत राष्ट्र बनना है, तो डर की नहीं, संवाद की राजनीति अपनानी होगी।
निष्कर्ष
राहुल गांधी का यह बयान न सिर्फ एक राजनीतिक टिप्पणी है, बल्कि यह एक गहन विचार है—जो देश के लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक और आर्थिक भविष्य से जुड़ा है। भारत को अगर दुनिया में अपनी मजबूत जगह बनानी है, तो उसे न केवल आंतरिक विविधता को बचाना होगा, बल्कि उसे सशक्त भी करना होगा।