
सन 2025 की दुर्गा पूजा का उत्सव पूरे देश में श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृतिक रंगों से सजा हुआ होगा। इसमें सप्तमी यानी पूजा का तीसरा दिन एक विशेष आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व रखता है। इस वर्ष सप्तमी तिथि 29 सितंबर 2025 को पड़ रही है और इसी दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा की विधिवत पूजा का शुभारंभ होता है।
यह लेख आपको सप्तमी की तिथि, पूजा विधियाँ, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, पंडाल सजावट से लेकर मौसम की संभावनाओं तक की पूरी जानकारी देगा, ताकि आप इस दिन को और भी अधिक श्रद्धा और जागरूकता के साथ मना सकें।
सप्तमी कब है? जानिए दिन और तारीख
दुर्गा पूजा 2025 की शुरुआत 28 सितंबर (शष्ठी) से होगी और यह 2 अक्टूबर (विजयादशमी) तक चलेगी। सप्तमी का पर्व इन तिथियों के बीच 29 सितंबर को बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन को ‘महासप्तमी’ भी कहा जाता है, और यही वह समय होता है जब दुर्गा पूजा के पंडालों में असली उत्साह और ऊर्जा देखने को मिलती है।
सप्तमी का धार्मिक महत्व और पूजा की विधियाँ
सप्तमी तिथि से दुर्गा पूजा की औपचारिक शुरुआत मानी जाती है। इस दिन सुबह के समय ‘नवपत्रिका स्थापना’ और ‘कोलाबौ स्नान’ जैसे धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। नवपत्रिका में नौ पवित्र पौधों को एक साथ बाँधा जाता है जो देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का प्रतीक होते हैं। इन्हें गंगा जल में स्नान कराकर पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है।
इस दिन की पूजा मुख्यतः माँ दुर्गा के सप्तम रूप – माँ कालरात्रि को समर्पित होती है। पूजा में विशेष मंत्रोच्चारण, पुष्पांजलि, दीप-धूप, भोग और आरती की जाती है। भोग में खीर, फल, नारियल, लड्डू और विशेष बंगाली मिठाइयों को देवी को अर्पित किया जाता है।
पूजा के दौरान ढाक की आवाज, शंखनाद और मंत्रों की गूंज वातावरण को दिव्य बना देती है। भक्त पूजा पंडालों में माता रानी के दर्शन करने के लिए लम्बी कतारों में खड़े रहते हैं और अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
सांस्कृतिक रौनक और पंडालों की तैयारियाँ
सप्तमी के दिन दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी होता है। पूरे शहर और गाँव की गलियाँ पंडालों की रौशनी से जगमगाने लगती हैं। रंग-बिरंगे फूल, पारंपरिक दीप, सजावटी झूमर और कलात्मक मूर्तियाँ लोगों को आकर्षित करती हैं।
कई स्थानों पर इस दिन से ही रात्रिकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम %