
अमेरिका में भारतीय की मौत की एक और दर्दनाक खबर सामने आई है। तेलंगाना के महबूबनगर जिले से ताल्लुक रखने वाले 31 वर्षीय मोहम्मद निज़ामुद्दीन की कैलिफ़ोर्निया पुलिस फायरिंग में गोली लगने से मौत हो गई। यह घटना 3 सितंबर को सांता क्लारा (Santa Clara, California) में हुई, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने परिवार को इसकी सूचना 15 दिन बाद दी।
15 दिन तक अंधेरे में रहा परिवार
निज़ामुद्दीन के परिजनों का कहना है कि अमेरिकी प्रशासन के पास उनके सभी संपर्क विवरण मौजूद थे, फिर भी उन्हें 18 सितंबर को ही जानकारी दी गई। इस दौरान उनका शव अमेरिका के एक अस्पताल की मोर्चरी में रखा रहा।
उनके छोटे भाई मोहम्मद खाजा मोइनुद्दीन ने कहा, “हमारे भाई की जिंदगी को बेरहमी से छीना गया। और हमें इतने दिन बाद बताया गया। मां इस सदमे को सहन नहीं कर पा रहीं, उन्होंने बोलना तक बंद कर दिया है।”
गूगल और EPAM में कर चुके थे काम
मोहम्मद निज़ामुद्दीन अमेरिका में IT सेक्टर में काम करते थे। उन्होंने 2021 से 2024 तक गूगल से जुड़े ईपीएएम सिस्टम्स (EPAM Systems) में नौकरी की। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और नई जॉब की तलाश में थे। उस दौरान वह अमेरिका में अपने दो अमेरिकी नागरिक रूममेट्स के साथ रह रहे थे।
उनके पिता मोहम्मद हसनुद्दीन सेवानिवृत्त सरकारी शिक्षक हैं, बड़ी बहन डॉ. रोमाना फिरदौस डॉक्टर हैं और छोटे भाई मोइनुद्दीन ने हाल ही में बी.टेक पूरा किया है।
पढ़ाई के लिए गए थे अमेरिका
निज़ामुद्दीन 2015 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए थे। 2017 में उन्होंने फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री पूरी की थी। इससे पहले उन्होंने महबूबनगर स्थित जेपीएन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से ECE (Electronics & Communication Engineering) में बी.टेक किया था।
परिवार का कहना है कि वह सप्ताह में एक-दो बार वीडियो कॉल पर माता-पिता से बात करते थे। लेकिन पिछले कुछ समय से वह तनाव में थे और रूममेट्स के व्यवहार की शिकायत करते रहते थे।
नस्लीय भेदभाव और तनाव की बात
भाई मोइनुद्दीन ने बताया कि निज़ामुद्दीन अक्सर कहते थे कि उनके रूममेट्स उनसे नस्लीय भेदभाव करते हैं और आक्रामक रहते हैं। उन्होंने यह भी बताया था कि उन्हें वेतन में धोखाधड़ी और गलत तरीके से नौकरी से निकाले जाने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
परिवार के मुताबिक इन्हीं कारणों से उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया था।
सोशल मीडिया पर साझा किया था दर्द
घटना से कुछ दिन पहले ही मोहम्मद निज़ामुद्दीन ने सोशल मीडिया पर अपनी परेशानियाँ लिखी थीं। उन्होंने बताया था कि उन्हें नस्लीय नफरत, वेतन धोखाधड़ी और जबरन नौकरी से निकालने जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ा।
उन्होंने यह भी जिक्र किया था कि मकान मालिक ने उन्हें घर खाली करने का नोटिस दिया है, लेकिन वे इसके खिलाफ लड़ रहे थे क्योंकि यह अनुचित था।
परिवार ने सरकार से लगाई गुहार
निज़ामुद्दीन के पिता मोहम्मद हसनुद्दीन ने भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर को पत्र लिखकर बेटे का पार्थिव शरीर भारत लाने में मदद मांगी है। उन्होंने कहा, “सरकारी प्रक्रिया शुरू हो गई है लेकिन इसमें समय लगेगा। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि बेटे का अंतिम संस्कार उसकी जन्मभूमि पर हो।”
परिवार और समुदाय में आक्रोश
परिवार का कहना है कि उन्हें अब तक यह समझ नहीं आया कि पुलिस को इतनी गोलियां चलाने की जरूरत क्यों पड़ी। मोइनुद्दीन का कहना है, “वह हमेशा शांत और मददगार स्वभाव का था। हमें नहीं पता क्यों उसे गोली मार दी गई।”
यह घटना सुनकर अमेरिका में बसे भारतीय समुदाय में गुस्सा है। सोशल मीडिया पर लगातार न्याय की मांग की जा रही है। भारत में भी लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर अमेरिकी अधिकारियों ने परिवार को सूचना देने में इतनी देर क्यों की।
निष्कर्ष
अमेरिका में भारतीय युवक की मौत की यह घटना केवल एक परिवार का दुख नहीं, बल्कि पूरी प्रवासी भारतीय बिरादरी की चिंता को सामने लाती है। नस्लीय भेदभाव और मानसिक तनाव जैसी चुनौतियाँ विदेशों में बसे भारतीयों के लिए आज भी बड़ी समस्या हैं। अब यह देखना बाकी है कि अमेरिकी पुलिस जांच में क्या सामने लाती है और भारत सरकार इस परिवार को किस तरह न्याय दिलाती है।